जिनके एक नाम से ही हम सभी का नाम है ऐसे स्वयंबुद्ध का जी नाम है महात्मा
जिनके शब्द शब्द में ही वेद का सम्भाव्य है ऐसे वेद वाक्य के है गान ये महात्मा
अर्क जैसा तप्त तेज श्वेत वस्त्र मूल भेष गिरी हिमखंड जैसे लग रहे महात्मा
डगमगा रहे है हाथ सांस दे रही न साथ फिर भी देखो मोक्ष पंथ चल रहे महात्मा
mahatma