चिंता ना कर भुखमरी की चिंता ना कर रोजगार की चिंत | हिंदी कविता

"चिंता ना कर भुखमरी की चिंता ना कर रोजगार की चिंता मत कर तु फसलों की चिंता मत कर तु नस्लों की मंहगाई है बढ जाने दे है किसान ये मर जाने दे धर्मों के हित बाँट दे इसको जड़ ये वतन की काट दे इसको सब जो मुद्दा भूल गये हैं फिर से दे परवाज़ तु इसको फिर से तु दहशत फैला दे हिन्दु-मुस्लिम को भड़का दे इतने दिन रोटी सेकी है थोड़ा इसको और तपा दे सबके मन का हाल तु ना सुन अपने "मन की बात" बता दे जाति धर्म और नाम पे सब को असली मुद्दों से भटका दे असली मुद्दों से भटका दे..!!"

 चिंता ना कर भुखमरी की 
चिंता ना कर रोजगार की 
चिंता मत कर तु फसलों की 
चिंता मत कर तु नस्लों की 

मंहगाई है बढ जाने दे
है किसान ये मर जाने दे 
धर्मों के हित बाँट दे इसको 
जड़ ये वतन की काट दे इसको 
सब जो मुद्दा भूल गये हैं 
फिर से दे परवाज़ तु इसको

फिर से तु दहशत फैला दे
हिन्दु-मुस्लिम को भड़का दे
इतने दिन रोटी सेकी है 
थोड़ा इसको और तपा दे 
सबके मन का हाल तु ना सुन
अपने "मन की बात" बता दे 
जाति धर्म और नाम पे सब को
असली मुद्दों से भटका दे
असली मुद्दों से भटका दे..!!

चिंता ना कर भुखमरी की चिंता ना कर रोजगार की चिंता मत कर तु फसलों की चिंता मत कर तु नस्लों की मंहगाई है बढ जाने दे है किसान ये मर जाने दे धर्मों के हित बाँट दे इसको जड़ ये वतन की काट दे इसको सब जो मुद्दा भूल गये हैं फिर से दे परवाज़ तु इसको फिर से तु दहशत फैला दे हिन्दु-मुस्लिम को भड़का दे इतने दिन रोटी सेकी है थोड़ा इसको और तपा दे सबके मन का हाल तु ना सुन अपने "मन की बात" बता दे जाति धर्म और नाम पे सब को असली मुद्दों से भटका दे असली मुद्दों से भटका दे..!!

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