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ज़्यादा नहीं कम लिखता हूँ। अल्फ़ाज़ों में ग़म लिखता हूँ।
दीपक कुमार
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साँसे अब मुश्किल में है तस्वीर तुम्हारी दिल में है... आँसू छुपायें भी तो कैसे सबके सामने बैठे महफ़िल में है....
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शहर मेरे शहर में रहकर भी उसका यूँ मेरे पास ना आना.... जैसे हवा का होना तो मगर मुझे सांस ना आना....
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कलम मैं इतना बड़ा शायर तो नहीं मगर बस इतना सा काम आता है.... हाथ में होती है जब कलम ज़ेहन में उसका ही नाम आता है....
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