मेरा लिखना सार्थक हो जाएगा,
जो मेरे हर शब्द
तेरे लबों से उतड़े
जैसे धरती की
अनगिन प्रार्थना पर
बरस जाता है मेघ __
ठीक वैसे ही
मेरे एक भी हर्फ
तेरे हृदय को स्पर्श कर ले
तो, टूट कर बरस जाना
सींच देना
मेरे वक्ष के
रेगिस्तान को,
भिंगो देना
मेरे मन में पड़े
सुखाङ को
लौट आना तुम
वो सब कुछ बन कर
जो कुछ भी नहीं हूं तुम बिन.
. निराला
© निराला
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