वो दिन कितने अच्छे हुआ करते थे,
जब हम लोग बच्चे हुआ करते थे।
कितना सुकूँ मिलता था सच कहना,
जब मकान कच्चे हुआ करते थे।
आज हकीकत से बहूत डर लगता है,
तब ख़्वाब भी सच्चे हुआ करते थे।
सच कहें तो आज परिवार टूट जाते हैं,
तब खिलौनों के बाल-बच्चे हुआ करते थे।
- आदर्श सिंह
©आदर्श सिंह
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