पिता नाम में ही सहजता है , पुकारते ही ऐसा प्रतीत होता है मानो सुखो का सागर हमारे अंदर विराजित हो गया हो। जिम्मेदारी के बोझ तले दबे कंधे, बच्चो की हर चाहत पूरी करने की मंशा , पत्नी की उम्मीद के मुताबिक खरा उतरना जैसे आंतरिक विचारो से एक पिता सदा ही गहन विचार में डूबा रहता है। यदि समाज के बात तो वहा भी निहत्थे ही लोगो के ताने बाने को बड़ी ही सरलता से समझा देते है। बाहर का दबाव, पुत्र के भविष्य की चिंता बेटी की शिक्षा जैसी तमाम गूढ़ विचारों से तर बतर रहता है। फिर भी एक पिता इन सब बातों को दर निकार कर अपनी समझ बूझ से परिवार की सही ढंग से चलाते है। यहीं महानता है एक पिता की कुछ कहे बिना ही सब कुछ बयां कर देते है। आपको बहुत प्रेम करते है पिता श्री।
©राहुल श्रीवास्तव
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