वो धधकी किसी चिता सी है
मुझको शीतल कर जाती है ,
मेरे घावों के दर्पण पर चंदन
का लेप लगाती है।
मेरी शय्या पर आकर चुपके
बालों को सहलाती है,
वो सारे घर का हाल बांध
मेरा भी धैर्य बंधाती है
और कहती है,
मै हू ना ठहरो ,
ये सब मै कर लेती हूं ।
जितना भार तुम्हे है दे दो ,
आंचल में भर लेती हूं ।
मेरा आंचल मजबूत बड़ा,
ब्रह्माण्ड उठा ये सकता है,
बाढ़ भेद के सूखे तल में फूल उगा ये सकता है।
ऐसा कहकर बड़ी सरल सी एक नज़र भर लेती है ।
मेरे माथे की रेखाएं अपने माथे कर लेती है ।
अक्षर
©akshar
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