तुम्ही बताओ लोग कहाँ अब, बाहर जाने पाते हैं
सोते हैं फिर उठते हैं फिर, उठकर फिर सो जाते हैं
टीवी और मोबाइल दोनों, साथ साथ रखते खोले
बीवी बोले काम कोई तो, बन जाते बिलकुल भोले
फोन की हर घंटी पर आँखें, नज़र रहे हर मैसेज पर
पास में बीवी बैठी हो तो, फोन से भी घबराते हैं
तुम्ही बताओ लोग कहाँ अब, बाहर जाने पाते हैं
बातों के ये जाल बिछायें, इक नंबर के ये झूठे
घर को अपने देखें ऐसे, जैसे जंगल से छूटे
इस कमरे से उस कमरे तक, कितना सफर करें दिनभर
चार लगाकर चक्कर अंदर, फिर अंदर रह जाते हैं
तुम्ही बताओ लोग कहाँ अब, बाहर जाने पाते हैं
गुटखा, पान, तम्बाकू को तड़पे हैं भीतर ही भीतर
गुजर रहे हैं दिन अब इनके, ठंडे पानी को पीकर
खाना सोना, खाना सोना, काम बचे हैं अब दो ही
चाय पकौड़े प्लेट सजा दो, खुश होकर बतियाते हैं
तुम्ही बताओ लोग कहाँ अब, बाहर जाने पाते हैं
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