केवल भाषा नहीं विचारों का साधन है हिन्दी..
साधक की पहचान, प्रगति, उत्थान है हिन्दी...
जनभाषा, राजभाषा तक सीमित नहीं है हिन्दी..
वैश्विकजन की भाषा बनती जा रही है हिन्दी...
अनेकता में एकता की पहचान है हिन्दी...
सम्पन्नता, सतत विकास का माध्यम है हिन्दी...
एक अपरिचित को दूसरों से परिचित बनाती है हिन्दी...
टूटे मनोबल को अपने कथनों से सुदृढ़ करती है हिन्दी...
जीवन के प्रारंभ से अंत तक साथ रहती है हिन्दी...
कर्तव्यपथ की 'एक तलाश' कराती है हिन्दी...
*गौरंदिनी*
©गौरव उपाध्याय 'एक तलाश'
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here