विपिन चौहान मन

विपिन चौहान मन Lives in Agra, Uttar Pradesh, India

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सांवरे कृष्ण ने सांवरी सांझ में अपने अधरों पे मुस्का के मुरली धरी तान ने प्रेम का वायुमंडल गढा नेह बदरी ने तब प्रेम वर्षा करी कनखियां कर रहीं कृष्ण की कामना अखडियों में अलख जग गयी आस की आज निधिवन के आंगन में धरती गगन कर रहे हैं प्रतीक्षा महारास की मन

#RIPRahatIndori  सांवरे कृष्ण ने सांवरी सांझ में 
अपने अधरों पे मुस्का के मुरली धरी
तान ने प्रेम का वायुमंडल गढा 
नेह बदरी ने तब प्रेम वर्षा करी
कनखियां कर रहीं कृष्ण की कामना 
अखडियों में अलख जग गयी आस की
आज निधिवन के आंगन में धरती गगन
कर रहे हैं प्रतीक्षा महारास की

मन

वंशी की मधुर तान मोहन भोग मिष्ठान प्रेम के सभी प्रमाण राधे को समर्पित पूजा पाठ आचमन या हो प्रार्थना भजन जप तप योग ध्यान राधे को समर्पित राधे नाम कृष्ण सार देह प्राण संचार कर्म धर्म गीता ग्यान राधे को समर्पित आज अष्टमी के पल कहते हैं हो विकल कृष्ण जन्म ये महान राधे को समर्पित विपिन चौहान मन

#Janamashtmi2020  वंशी की मधुर तान मोहन भोग मिष्ठान 
प्रेम के सभी प्रमाण राधे को समर्पित 
पूजा पाठ आचमन या हो प्रार्थना भजन 
जप तप योग ध्यान राधे को समर्पित 
राधे नाम कृष्ण सार देह प्राण संचार 
कर्म धर्म गीता ग्यान राधे को समर्पित
आज अष्टमी के पल कहते हैं हो विकल 
कृष्ण जन्म ये महान राधे को समर्पित

विपिन चौहान मन
#विपिन #poem

#विपिन चौहान मन

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सुब्हो शब ख़ामोश जैसे हाय महशर की तरह ख़म ज़दा आवाज़ भी है जुल्फ़ ए सर की तरह हादिसा ना ज़लज़ले की शक्ल गुज़रे इसलिए एहतियातन दिल से निकले लोग भी डर की तरह था सराब ओ सहरा का मंज़र बहुत देखा हुआ ख़ाक ए ग़म के साथ उस के दीद ऐ तर की तरह इक गरज़ है सिर्फ सज़दे में अकीदत के सिवा पूजता है बुत को इंसा ख़ुद भी पत्थर की तरह फिर नई ताबीर को कुर्बान पिछले ख़्वाब से..... हम शहर की जुस्तजू में गांव के घर की तरह विपिन चौहान मन

#मन  सुब्हो  शब  ख़ामोश  जैसे  हाय  महशर की तरह
ख़म ज़दा  आवाज़ भी है  जुल्फ़ ए सर  की तरह

हादिसा  ना  ज़लज़ले  की  शक्ल  गुज़रे इसलिए
एहतियातन दिल से निकले लोग भी डर की तरह

था  सराब  ओ  सहरा का  मंज़र बहुत  देखा हुआ
ख़ाक  ए ग़म के साथ उस के  दीद ऐ तर की तरह

इक  गरज़  है  सिर्फ  सज़दे  में अकीदत  के  सिवा
पूजता  है  बुत  को  इंसा  ख़ुद भी पत्थर  की तरह

फिर  नई  ताबीर  को  कुर्बान  पिछले  ख़्वाब  से.....
हम  शहर  की  जुस्तजू  में  गांव  के  घर  की  तरह

विपिन चौहान मन

#मन

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Alone तमाम बज़्म की पाबंदगी के बाद उठा हमारा जिक्र मुसलसल उसी के बाद उठा वो जब तलक थी तलब की सुनी नहीं दस्तक मजीद प्यास का मंज़र नदी के बाद उठा अजी ये छोड़िए जी कर के क्या गुनाह किया ये क्या हिसाब सा नेकी बदी के बाद उठा न तंज़ था न शिकायत न फिक्र थी न मलाल अजब ही शोर मेरी जिंदगी के बाद उठा विपिन चौहान मन

#शायरी  Alone  तमाम बज़्म की पाबंदगी के बाद उठा
हमारा जिक्र मुसलसल उसी के बाद उठा

वो जब तलक थी तलब की सुनी नहीं दस्तक
मजीद प्यास का मंज़र नदी के बाद उठा

अजी ये छोड़िए जी कर के क्या गुनाह किया
ये क्या हिसाब सा नेकी बदी के बाद उठा

न तंज़ था न शिकायत न फिक्र थी न मलाल 
अजब ही शोर मेरी जिंदगी के बाद उठा





विपिन चौहान मन

Alone तमाम बज़्म की पाबंदगी के बाद उठा हमारा जिक्र मुसलसल उसी के बाद उठा वो जब तलक थी तलब की सुनी नहीं दस्तक मजीद प्यास का मंज़र नदी के बाद उठा अजी ये छोड़िए जी कर के क्या गुनाह किया ये क्या हिसाब सा नेकी बदी के बाद उठा न तंज़ था न शिकायत न फिक्र थी न मलाल अजब ही शोर मेरी जिंदगी के बाद उठा विपिन चौहान मन

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#शायरी

पहली कोशिश...

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