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White तन ढके मन ढंके... और बताओं क्या क्या ढंके.... बाबू के हाथों में अपना कंकाल धरे, ... अरे उससे पहले तो मेरी योनी को तेरे हाथ धरे....! बताओं समाज तन ढके मन ढंके..! मां के जिस्मों में वेदना की लहर उठें... खिलौना जैसा खेली थी, मार पीट भी की गई... अरे उम्र भी क्या ..? , डाक्टरनी बनने की ओर ही थी..! गलियारों में तुम भी आज खड़े थे... खाकी खादी संग बड़े बड़े डाक्टर भी अडे थे.. तन न ढके थे, मन न ढंके थे... बदचन के बस शौर थे, बताओं समाज.... रोटी तो सेक ली... अब कब जाओगे..! तन ढके मन ढंके... और बताओं क्या क्या ढंके...! ! (#कोलकाता डाक्टर रेप..) ©Dev Rishi

#कोलकाता #कविता  White तन ढके मन ढंके... 
और बताओं क्या क्या ढंके....
बाबू के हाथों में अपना कंकाल धरे, ...
अरे उससे पहले तो मेरी योनी को तेरे हाथ धरे....!

बताओं समाज तन ढके मन ढंके..! 
मां के जिस्मों में वेदना की लहर उठें...
खिलौना जैसा खेली थी, मार पीट भी की गई...
अरे उम्र भी क्या ..? , डाक्टरनी बनने की ओर ही थी..!

गलियारों में तुम भी  आज खड़े थे...
खाकी खादी संग बड़े बड़े डाक्टर भी अडे थे..
तन न ढके थे, मन न ढंके थे... बदचन के बस शौर थे,
बताओं समाज.... रोटी तो सेक ली... अब कब  जाओगे..!
तन ढके मन ढंके... और बताओं क्या क्या ढंके...! !

(#कोलकाता डाक्टर रेप..)

©Dev Rishi

# कोलकाता डाक्टर रेप मामला..! हिंदी कविता

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White तन ढके मन ढंके... और बताओं क्या क्या ढंके.... बाबू के हाथों में अपना कंकाल धरे, ... अरे उससे पहले तो मेरी योनी को तेरे हाथ धरे....! बताओं समाज तन ढके मन ढंके..! मां के जिस्मों में वेदना की लहर उठें... खिलौना जैसा खेली थी, मार पीट भी की गई... अरे उम्र भी क्या ..? , डाक्टरनी बनने की ओर ही थी..! गलियारों में तुम भी आज खड़े थे... खाकी खादी संग बड़े बड़े डाक्टर भी अडे थे.. तन न ढके थे, मन न ढंके थे... बदचन के बस शौर थे, बताओं समाज.... रोटी तो सेक ली... अब कब जाओगे..! तन ढके मन ढंके... और बताओं क्या क्या ढंके...! ! (#कोलकाता डाक्टर रेप..) ©Dev Rishi

#कोलकाता #कविता  White तन ढके मन ढंके... 
और बताओं क्या क्या ढंके....
बाबू के हाथों में अपना कंकाल धरे, ...
अरे उससे पहले तो मेरी योनी को तेरे हाथ धरे....!

बताओं समाज तन ढके मन ढंके..! 
मां के जिस्मों में वेदना की लहर उठें...
खिलौना जैसा खेली थी, मार पीट भी की गई...
अरे उम्र भी क्या ..? , डाक्टरनी बनने की ओर ही थी..!

गलियारों में तुम भी  आज खड़े थे...
खाकी खादी संग बड़े बड़े डाक्टर भी अडे थे..
तन न ढके थे, मन न ढंके थे... बदचन के बस शौर थे,
बताओं समाज.... रोटी तो सेक ली... अब कब  जाओगे..!
तन ढके मन ढंके... और बताओं क्या क्या ढंके...! !

(#कोलकाता डाक्टर रेप..)

©Dev Rishi

# कोलकाता डाक्टर रेप मामला..! हिंदी कविता

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