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#बैंगन #सब्जी #शायरी #whatsappstatus #StatusSayari

स्वभाव में हमारे #swabhav #Mirch #आलू #बैंगन #सब्जी #Tikhapan #लोग #StatusSayari #whatsappstatus #myvideo शायरी attitude

189 View

गीत :- आजादी का दिवस मनाऊँ ,भूखा अपना लाल सुलाऊँ । कर्ज बैंक का सर के ऊपर, खून बेचकर उसे चुकाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ.... सरकारें करती मनमानी ,  पीने का भी छीने पानी । कैसे जीते हैं हम निर्धन ,  कैसे तुमको व्यथा सुनाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ... मैं ही एक नहीं हूँ निर्धन ,  आटा दाल न होता ईर्धन । जन-जन का मैं हाल सुनाऊँ ,  आओ चल कर तुम्हें दिखाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ... शिक्षा भी व्यापार हुई है ,  महँगी सब्जी दाल हुई है आमद हो गई है आज चव्न्नी,  कैसे घर का खर्च चलाऊँ । आजादी का दिवस मनाऊँ... सभी स्वस्थ सेवाएं महँगी , जीवन की घटनाएं महँगी । आती मौत न जीवन को, फंदा अपने गले लगाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ... ज्यादा हुआ दूध उत्पादन, बिन पशु के आ जाता आँगन । किसको दर्पण आज दिखाऊँ  दिल कहता शामिल हो जाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ..... आजादी का दिवस मनाऊँ ,भूखा अपना लाल सुलाऊँ । महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  गीत :-
आजादी का दिवस मनाऊँ ,भूखा अपना लाल सुलाऊँ ।
कर्ज बैंक का सर के ऊपर, खून बेचकर उसे चुकाऊँ ।।
आजादी का दिवस मनाऊँ....

सरकारें करती मनमानी , 
पीने का भी छीने पानी ।
कैसे जीते हैं हम निर्धन ,
 कैसे तुमको व्यथा सुनाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ...

मैं ही एक नहीं हूँ निर्धन , 
आटा दाल न होता ईर्धन ।
जन-जन का मैं हाल सुनाऊँ , 
आओ चल कर तुम्हें दिखाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ...

शिक्षा भी व्यापार हुई है , 
महँगी सब्जी दाल हुई है
आमद हो गई है आज चव्न्नी, 
कैसे घर का खर्च चलाऊँ । आजादी का दिवस मनाऊँ...

सभी स्वस्थ सेवाएं महँगी ,
जीवन की घटनाएं महँगी ।
आती मौत न जीवन को,
फंदा अपने गले लगाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ...

ज्यादा हुआ दूध उत्पादन,
बिन पशु के आ जाता आँगन ।
किसको दर्पण आज दिखाऊँ 
दिल कहता शामिल हो जाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ.....
आजादी का दिवस मनाऊँ ,भूखा अपना लाल सुलाऊँ ।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- आजादी का दिवस मनाऊँ ,  भूखा अपना लाल सुलाऊँ । कर्ज बैंक का सर के ऊपर,

14 Love

#कॉमेडी

'कॉमेडी जोक्स'मैडम बच्चों के साथ सब्जीमार्केट गई

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#followback #Trending #Facebook #TikTok

करम है सब्जी गरम है रोटी और🤣🤣🤣Trending hashtags for #Facebook. Copy. #Facebook #insta #viral #India #likes #followback #TikTok #Trending #li

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दोहा :- अन्न गिरे भू भाग पर , नहीं उठाते लोग । और चरण रज माथ पे , करते हैं उपयोग ।। जीवन दाता पर सभी , प्रवचन देते लोग । आये कोई सामने , करने भी सहयोग ।। मातु-पिता सेवा नही , खुद पे है अभिमान । आकर देखो नाथ अब , कलयुग का इंसान ।। आज कहीं दिखता नही , रिश्तों में सत्कार । और खडे इंसान है , भोले के दरबार ।। छोड़ो माया मोह को, थे जिनके यह बोल । कभी आप भी देखिये , धन से उनको तोल ।। बीस साल की नौकरी , में सिकुडी है खाल । एक समय रोटी मिले , अब ऐसा है हाल ।। दाल मिले सब्जी नही , ऐसे थे हालात । आप बताते हो हमें , अच्छे रख जज्बात ।। जीवन के इस खेल में, निर्धन पिश्ता सत्य । दौलत वाले ले मजा , कर उसपे अब अत्य ।। बाबाओं की बात पर , करो यकीं मत आज । पढ़े लिखे हो आज तुम , करो धर्म के काज ।। भूत प्रेत ये कुछ नहीं, सब है कर्म विधान । जिसके जैसे कर्म है , देते फल भगवान ।। इधर-उधर मत देख तू , राह नही आसान । राह बताये जो सरल , वो ही है शैतान ।। सास ससुर सम्मान दो , मातु-पिता अब जान । यह ही देती मातु है , बेटी को वरदान ।। मातु-पिता ने जब किया , तेरा कन्यादान । उस दिन के ही बाद से , तुम वहाँ मेहमान ।। जिसे हृदय से चाहना , अब तक का था काम । वही छोड़ मुझको यहाँ , करता है आराम ।। पहले तो सबला बनी , इस जग की हर नार । जब पाया कुछ भी नहीं , तो अब करे विचार ।। पहले पति के प्रेम की , तनिक नही परवाह । ढ़लती उम्र दिखला रही , पति से प्रेम अथाह ।। पाकर झूठे प्रेम को, किया बहुत अभिमान । अब आया वह सामने , लिए रूप शैतान ।। झूठे जग के लोग है , करना मत विश्वास । पाते अक्सर घात है , जो करते हैं आस ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  दोहा :-
अन्न गिरे भू भाग पर , नहीं उठाते लोग ।
और चरण रज माथ पे , करते हैं उपयोग ।।
जीवन दाता पर सभी , प्रवचन देते लोग ।
आये कोई सामने , करने भी सहयोग ।।
मातु-पिता सेवा नही , खुद पे है अभिमान ।
आकर देखो नाथ अब , कलयुग का इंसान ।।
आज कहीं दिखता नही , रिश्तों में सत्कार ।
और खडे इंसान है , भोले के दरबार ।।
छोड़ो माया मोह को, थे जिनके यह बोल ।
कभी आप भी देखिये , धन से उनको तोल ।।
बीस साल की नौकरी , में सिकुडी है खाल ।
एक समय रोटी मिले , अब ऐसा है हाल ।।
दाल मिले सब्जी नही , ऐसे थे हालात ।
आप बताते हो हमें , अच्छे रख जज्बात ।।
जीवन के इस खेल में, निर्धन पिश्ता सत्य ।
दौलत वाले ले मजा , कर उसपे अब अत्य ।।
बाबाओं की बात पर , करो यकीं मत आज ।
पढ़े लिखे हो आज तुम , करो धर्म के काज ।।
भूत प्रेत ये कुछ नहीं, सब है कर्म विधान ।
जिसके जैसे कर्म है , देते फल भगवान ।।
इधर-उधर मत देख तू , राह नही आसान ।
राह बताये जो सरल , वो ही है शैतान ।।
सास ससुर सम्मान दो , मातु-पिता अब जान ।
यह ही देती मातु है , बेटी को वरदान ।।
मातु-पिता ने जब किया , तेरा कन्यादान ।
उस दिन के ही बाद से , तुम वहाँ मेहमान ।।
जिसे हृदय से चाहना , अब तक का था काम ।
वही छोड़ मुझको यहाँ , करता है आराम ।।
पहले तो सबला बनी , इस जग की हर नार ।
जब पाया कुछ भी नहीं , तो अब करे विचार ।।
पहले पति के प्रेम की , तनिक नही परवाह ।
ढ़लती उम्र दिखला रही , पति से प्रेम अथाह ।।
पाकर झूठे प्रेम को, किया बहुत अभिमान ।
अब आया वह सामने , लिए रूप शैतान ।।
झूठे जग के लोग है , करना मत विश्वास ।
पाते अक्सर घात है , जो करते हैं आस ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- अन्न गिरे भू भाग पर , नहीं उठाते लोग । और चरण रज माथ पे , करते हैं उपयोग ।। जीवन दाता पर सभी , प्रवचन देते लोग । आये कोई सामने , करन

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स्वभाव में हमारे #swabhav #Mirch #आलू #बैंगन #सब्जी #Tikhapan #लोग #StatusSayari #whatsappstatus #myvideo शायरी attitude

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गीत :- आजादी का दिवस मनाऊँ ,भूखा अपना लाल सुलाऊँ । कर्ज बैंक का सर के ऊपर, खून बेचकर उसे चुकाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ.... सरकारें करती मनमानी ,  पीने का भी छीने पानी । कैसे जीते हैं हम निर्धन ,  कैसे तुमको व्यथा सुनाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ... मैं ही एक नहीं हूँ निर्धन ,  आटा दाल न होता ईर्धन । जन-जन का मैं हाल सुनाऊँ ,  आओ चल कर तुम्हें दिखाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ... शिक्षा भी व्यापार हुई है ,  महँगी सब्जी दाल हुई है आमद हो गई है आज चव्न्नी,  कैसे घर का खर्च चलाऊँ । आजादी का दिवस मनाऊँ... सभी स्वस्थ सेवाएं महँगी , जीवन की घटनाएं महँगी । आती मौत न जीवन को, फंदा अपने गले लगाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ... ज्यादा हुआ दूध उत्पादन, बिन पशु के आ जाता आँगन । किसको दर्पण आज दिखाऊँ  दिल कहता शामिल हो जाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ..... आजादी का दिवस मनाऊँ ,भूखा अपना लाल सुलाऊँ । महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  गीत :-
आजादी का दिवस मनाऊँ ,भूखा अपना लाल सुलाऊँ ।
कर्ज बैंक का सर के ऊपर, खून बेचकर उसे चुकाऊँ ।।
आजादी का दिवस मनाऊँ....

सरकारें करती मनमानी , 
पीने का भी छीने पानी ।
कैसे जीते हैं हम निर्धन ,
 कैसे तुमको व्यथा सुनाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ...

मैं ही एक नहीं हूँ निर्धन , 
आटा दाल न होता ईर्धन ।
जन-जन का मैं हाल सुनाऊँ , 
आओ चल कर तुम्हें दिखाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ...

शिक्षा भी व्यापार हुई है , 
महँगी सब्जी दाल हुई है
आमद हो गई है आज चव्न्नी, 
कैसे घर का खर्च चलाऊँ । आजादी का दिवस मनाऊँ...

सभी स्वस्थ सेवाएं महँगी ,
जीवन की घटनाएं महँगी ।
आती मौत न जीवन को,
फंदा अपने गले लगाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ...

ज्यादा हुआ दूध उत्पादन,
बिन पशु के आ जाता आँगन ।
किसको दर्पण आज दिखाऊँ 
दिल कहता शामिल हो जाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ.....
आजादी का दिवस मनाऊँ ,भूखा अपना लाल सुलाऊँ ।
महेन्द्र सिंह प्रखर

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गीत :- आजादी का दिवस मनाऊँ ,  भूखा अपना लाल सुलाऊँ । कर्ज बैंक का सर के ऊपर,

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करम है सब्जी गरम है रोटी और🤣🤣🤣Trending hashtags for #Facebook. Copy. #Facebook #insta #viral #India #likes #followback #TikTok #Trending #li

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दोहा :- अन्न गिरे भू भाग पर , नहीं उठाते लोग । और चरण रज माथ पे , करते हैं उपयोग ।। जीवन दाता पर सभी , प्रवचन देते लोग । आये कोई सामने , करने भी सहयोग ।। मातु-पिता सेवा नही , खुद पे है अभिमान । आकर देखो नाथ अब , कलयुग का इंसान ।। आज कहीं दिखता नही , रिश्तों में सत्कार । और खडे इंसान है , भोले के दरबार ।। छोड़ो माया मोह को, थे जिनके यह बोल । कभी आप भी देखिये , धन से उनको तोल ।। बीस साल की नौकरी , में सिकुडी है खाल । एक समय रोटी मिले , अब ऐसा है हाल ।। दाल मिले सब्जी नही , ऐसे थे हालात । आप बताते हो हमें , अच्छे रख जज्बात ।। जीवन के इस खेल में, निर्धन पिश्ता सत्य । दौलत वाले ले मजा , कर उसपे अब अत्य ।। बाबाओं की बात पर , करो यकीं मत आज । पढ़े लिखे हो आज तुम , करो धर्म के काज ।। भूत प्रेत ये कुछ नहीं, सब है कर्म विधान । जिसके जैसे कर्म है , देते फल भगवान ।। इधर-उधर मत देख तू , राह नही आसान । राह बताये जो सरल , वो ही है शैतान ।। सास ससुर सम्मान दो , मातु-पिता अब जान । यह ही देती मातु है , बेटी को वरदान ।। मातु-पिता ने जब किया , तेरा कन्यादान । उस दिन के ही बाद से , तुम वहाँ मेहमान ।। जिसे हृदय से चाहना , अब तक का था काम । वही छोड़ मुझको यहाँ , करता है आराम ।। पहले तो सबला बनी , इस जग की हर नार । जब पाया कुछ भी नहीं , तो अब करे विचार ।। पहले पति के प्रेम की , तनिक नही परवाह । ढ़लती उम्र दिखला रही , पति से प्रेम अथाह ।। पाकर झूठे प्रेम को, किया बहुत अभिमान । अब आया वह सामने , लिए रूप शैतान ।। झूठे जग के लोग है , करना मत विश्वास । पाते अक्सर घात है , जो करते हैं आस ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

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अन्न गिरे भू भाग पर , नहीं उठाते लोग ।
और चरण रज माथ पे , करते हैं उपयोग ।।
जीवन दाता पर सभी , प्रवचन देते लोग ।
आये कोई सामने , करने भी सहयोग ।।
मातु-पिता सेवा नही , खुद पे है अभिमान ।
आकर देखो नाथ अब , कलयुग का इंसान ।।
आज कहीं दिखता नही , रिश्तों में सत्कार ।
और खडे इंसान है , भोले के दरबार ।।
छोड़ो माया मोह को, थे जिनके यह बोल ।
कभी आप भी देखिये , धन से उनको तोल ।।
बीस साल की नौकरी , में सिकुडी है खाल ।
एक समय रोटी मिले , अब ऐसा है हाल ।।
दाल मिले सब्जी नही , ऐसे थे हालात ।
आप बताते हो हमें , अच्छे रख जज्बात ।।
जीवन के इस खेल में, निर्धन पिश्ता सत्य ।
दौलत वाले ले मजा , कर उसपे अब अत्य ।।
बाबाओं की बात पर , करो यकीं मत आज ।
पढ़े लिखे हो आज तुम , करो धर्म के काज ।।
भूत प्रेत ये कुछ नहीं, सब है कर्म विधान ।
जिसके जैसे कर्म है , देते फल भगवान ।।
इधर-उधर मत देख तू , राह नही आसान ।
राह बताये जो सरल , वो ही है शैतान ।।
सास ससुर सम्मान दो , मातु-पिता अब जान ।
यह ही देती मातु है , बेटी को वरदान ।।
मातु-पिता ने जब किया , तेरा कन्यादान ।
उस दिन के ही बाद से , तुम वहाँ मेहमान ।।
जिसे हृदय से चाहना , अब तक का था काम ।
वही छोड़ मुझको यहाँ , करता है आराम ।।
पहले तो सबला बनी , इस जग की हर नार ।
जब पाया कुछ भी नहीं , तो अब करे विचार ।।
पहले पति के प्रेम की , तनिक नही परवाह ।
ढ़लती उम्र दिखला रही , पति से प्रेम अथाह ।।
पाकर झूठे प्रेम को, किया बहुत अभिमान ।
अब आया वह सामने , लिए रूप शैतान ।।
झूठे जग के लोग है , करना मत विश्वास ।
पाते अक्सर घात है , जो करते हैं आस ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

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