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# धर्म # कर्म #भक्ति

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White वो धर्म ही क्या जो दया ना सिखा सके , वो पूजा ही क्या जो दिल को किसी के दर्द से पिघला ना सके। क्या करना ऐसे धर्म के रिवाजों को जो "जुल्म करना पाप है" के समझा न सका... ©Ramnik

#धर्म  White वो धर्म ही क्या जो दया  ना सिखा सके ,
वो पूजा ही क्या जो दिल को किसी के दर्द से पिघला ना सके।
क्या करना ऐसे धर्म के रिवाजों को जो "जुल्म करना पाप है" के समझा न सका...

©Ramnik

#धर्म

13 Love

#गौ #माता #धर्म #कर्म#भक्ति

144 View

#भक्ति #कर्म #धर्म #गौमाता

153 View

#कर्तव्य #भक्ति #धर्म #सेवा #कर्म
#कविता  White दस दिन के दस धर्म।
सिखाते है कैसे काटे कर्म।।
जीवन के चक्र भंवर से।
कैसे जाये भव से  तर।।
क्या रखा है,जीवन में।
रे मानव स्व कल्याण कर।।
कब तक रहेंगे जीवन में।
हम खुद को संवार कर ।।
पुण्य कर्म कमा, क्यू ना जीले।
अपना आत्मकल्याण कर।।
पाप कमाते कितना हम।
मान अहंकार में डूब कर।
बुरे के साथ बुरा करके हम।
क्या पा लेंगे सत धर्म कर।।
मन में क्षमादान के भाव रख।
मांग क्षमा तू सत्य धर्म कर।।
ना रख बैर,न रख अहम।
जिसे तू,जो तुझे पसंद नही।
ना बैर,ना प्रेम व्यबाहर कर।।
मांग ले क्षमा उससे भी हाथ जोड़कर।
मन को अपने तू बोझ से हल्का कर।।
साधना अपनी पूर्णकर खुद को तपाकर।
तोड़ दे अहंकार सारे उत्तम क्षमा मांगकर।।

©chahat

दस धर्म......

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# धर्म # कर्म #भक्ति

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White वो धर्म ही क्या जो दया ना सिखा सके , वो पूजा ही क्या जो दिल को किसी के दर्द से पिघला ना सके। क्या करना ऐसे धर्म के रिवाजों को जो "जुल्म करना पाप है" के समझा न सका... ©Ramnik

#धर्म  White वो धर्म ही क्या जो दया  ना सिखा सके ,
वो पूजा ही क्या जो दिल को किसी के दर्द से पिघला ना सके।
क्या करना ऐसे धर्म के रिवाजों को जो "जुल्म करना पाप है" के समझा न सका...

©Ramnik

#धर्म

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#गौ #माता #धर्म #कर्म#भक्ति

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#भक्ति #कर्म #धर्म #गौमाता

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#कर्तव्य #भक्ति #धर्म #सेवा #कर्म
#कविता  White दस दिन के दस धर्म।
सिखाते है कैसे काटे कर्म।।
जीवन के चक्र भंवर से।
कैसे जाये भव से  तर।।
क्या रखा है,जीवन में।
रे मानव स्व कल्याण कर।।
कब तक रहेंगे जीवन में।
हम खुद को संवार कर ।।
पुण्य कर्म कमा, क्यू ना जीले।
अपना आत्मकल्याण कर।।
पाप कमाते कितना हम।
मान अहंकार में डूब कर।
बुरे के साथ बुरा करके हम।
क्या पा लेंगे सत धर्म कर।।
मन में क्षमादान के भाव रख।
मांग क्षमा तू सत्य धर्म कर।।
ना रख बैर,न रख अहम।
जिसे तू,जो तुझे पसंद नही।
ना बैर,ना प्रेम व्यबाहर कर।।
मांग ले क्षमा उससे भी हाथ जोड़कर।
मन को अपने तू बोझ से हल्का कर।।
साधना अपनी पूर्णकर खुद को तपाकर।
तोड़ दे अहंकार सारे उत्तम क्षमा मांगकर।।

©chahat

दस धर्म......

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