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#Nojotoshayeri✍️M #loV€fOR€v€R #भक्ति #Sad_Status #L♥️ve #ramji  White ''यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत I अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृज्याहम।।'

©Soham Das

यदा यदा ही धर्मस्य गीता श्लोक सुनाइए #Sad_Status #raah #ramji #Ta #Ya #Ma #L♥️ve #loV€fOR€v€R #Nojotoshayeri✍️M #L♥️ve भक्ति रिंगटोन भक्त

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#मोटिवेशनल #sad_shayari  White {Bolo Ji Radhey Radhey}
चाहे शगुन व निर्गुण रुप मे भगवान श्री कृष्ण जी की उपासना से गुणातीत ब्रह्म की प्राप्ति होती है। यों तो गुणातीत का वर्णन नित्य, ज्ञान, अनन्त आदि शब्दोंसे किया गया है पर वास्तव में उसका स्वरूप वाणीbद्वारा नहीं बताया जा सकता, वह तो अचिन्त्य और अनिर्वचनीय है। अन्तमें वेद भी 'नेति-नेति' कहकर ही बतलाता है। वह अनुमान प्रमाण से भी नहीं जाना जा सकता, केवल अनुभव रूप ही है। क्योंकि समस्त प्रमाण उस ब्रह्म के सकाश से ही सिद्ध होते हैं। श्रुति कहती है-

©N S Yadav GoldMine

#sad_shayari {Bolo Ji Radhey Radhey} चाहे शगुन व निर्गुण रुप मे भगवान श्री कृष्ण जी की उपासना से गुणातीत ब्रह्म की प्राप्ति होती है। यों तो

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White गीत :- उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... छोड़ सभी वह रिश्ते-नाते, बैठे ऊँचे आसन पे । पहचाने इंसान नही जो , भाषण देते जीवन पे ।। जिसे खेलना पाप कहा था , मातु-पिता औ गुरुवर ने । उसी खेल का मिले प्रलोभन , सुन लो अब सरकारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव ..... मातु-पिता बिन कैसा जीवन , हमने पढ़ा किताबों में । ये बतलाते आकर हमको , दौलत नही हिसाबों में ।। इनके जैसा कभी न बनना , ये तो हैं खुद्दारों में । दया धर्म की टाँगें टूटी , इन सबके व्यापारो से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव.... नंगा नाच भरे आँगन में, इनके देख घरानों में । बेटी बेटा झूम रहे हैं , जाने किस-किस बाहों में ।। अपने घर को आप सँभाले, आया आज विचारों में । झाँक नही तू इनके घर को , पतन हुए संस्कारो से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव..... दौड़ रहे क्यों भूखे बच्चे , तेरे इन दरबारों में । क्या इनको तू मान लिया है , निर्गुण औ लाचारों में ।। बनकर दास रहे ये तेरा , करे भोग भण्डारों में । ऐसी सोच झलक कर आयी , जग के ठेकेदारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव ... बदलो मिलकर चाल सभी यह , प्रकृति बदलने वाली है । भूखे प्यासे लोगो की अब , आह निकलने वाली है । हमने वह आवाज सुनी है , चीखों और पुकारों से । आने वाले हैं हक लेने , देखो वह हथियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते वे अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White गीत :-
उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

छोड़ सभी वह रिश्ते-नाते, बैठे ऊँचे आसन पे ।
पहचाने इंसान नही जो , भाषण देते जीवन पे ।।
जिसे खेलना पाप कहा था , मातु-पिता औ गुरुवर ने ।
उसी खेल का मिले प्रलोभन , सुन लो अब सरकारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव .....

मातु-पिता बिन कैसा जीवन , हमने पढ़ा किताबों में ।
ये बतलाते आकर हमको , दौलत नही हिसाबों में ।।
इनके जैसा कभी न बनना , ये तो हैं खुद्दारों में ।
दया धर्म की टाँगें टूटी , इन सबके व्यापारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव....

नंगा नाच भरे आँगन में, इनके देख घरानों में ।
बेटी बेटा झूम रहे हैं , जाने किस-किस बाहों में ।।
अपने घर को आप सँभाले, आया आज विचारों में ।
झाँक नही तू इनके घर को , पतन हुए संस्कारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव.....

दौड़ रहे क्यों भूखे बच्चे , तेरे इन दरबारों में ।
क्या इनको तू मान लिया है , निर्गुण औ लाचारों में ।।
बनकर दास रहे ये तेरा , करे भोग भण्डारों में ।
ऐसी सोच झलक कर आयी , जग के ठेकेदारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ...

बदलो मिलकर चाल सभी यह , प्रकृति बदलने वाली है ।
भूखे प्यासे लोगो की अब , आह निकलने वाली है ।
हमने वह आवाज सुनी है , चीखों और पुकारों से ।
आने वाले हैं हक लेने , देखो वह हथियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते वे अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... छोड़ सभ

9 Love

White दोहा :- स्कूल सभी सरकार के , होने दो अब बन्द । बच्चे सब निर्गुण दिखे , शिक्षक ले आनंद ।। मातु-पिता क्यों शिष्य के , आज हुए है खिन्न । शिक्षा स्तर यह किसलिए , बोल हुआ है निम्न । कुछ बालक नादान है, मातु-पिता मजबूर । कुछ से शिक्षा आज भी , होती कोसो दूर ।। अब सरकारी स्कूल की , करना मत फरियाद । बच्चे प्राईवेट में , रखे नई बुनियाद ।। दिन आये ये याद क्यों , दिल पे किया प्रहार । नौकर बन सरकार के , करते आत्याचार ।। ऐसे लोगो की यहाँ , कौन करे परवाह । जो रख दौलत पास में , करे और की चाह ।। धन सम्पत व्यापार का , महत्व जो हो बन्द । गली-गली फिर देखना, मिल जायेंगे नन्द ।। ग्वाला अब जग में नही , दिखे रूप इंसान । मौका पाते आज जो , बन जाते शैतान ।। क्षमा याचना कर रहा , गुरुवर से इस बार । बुद्धि हीन की आप ही, हाथ रखो पतवार ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White दोहा :-
स्कूल सभी सरकार के , होने दो अब बन्द ।
बच्चे सब निर्गुण दिखे , शिक्षक ले आनंद ।।
मातु-पिता क्यों शिष्य के , आज हुए है खिन्न ।
शिक्षा स्तर यह किसलिए , बोल हुआ है निम्न ।
कुछ बालक नादान है, मातु-पिता मजबूर ।
कुछ से शिक्षा आज भी , होती कोसो दूर ।।
अब सरकारी स्कूल की , करना मत फरियाद ।
बच्चे प्राईवेट में , रखे नई बुनियाद ।।
दिन आये ये याद क्यों , दिल पे किया प्रहार ।
नौकर बन सरकार के , करते आत्याचार ।।
ऐसे लोगो की यहाँ , कौन करे परवाह ।
जो रख दौलत पास में , करे और की चाह ।।
धन सम्पत व्यापार का , महत्व जो हो बन्द ।
गली-गली फिर देखना, मिल जायेंगे नन्द ।।
ग्वाला अब जग में नही , दिखे रूप इंसान ।
मौका पाते आज जो , बन जाते शैतान ।।
क्षमा याचना कर रहा , गुरुवर से इस बार ।
बुद्धि हीन की आप ही, हाथ रखो पतवार ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- स्कूल सभी सरकार के , होने दो अब बन्द । बच्चे सब निर्गुण दिखे , शिक्षक ले आनंद ।। मातु-पिता क्यों शिष्य के , आज हुए है खिन्न । शिक्षा

15 Love

#Nojotoshayeri✍️M #loV€fOR€v€R #भक्ति #Sad_Status #L♥️ve #ramji  White ''यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत I अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृज्याहम।।'

©Soham Das

यदा यदा ही धर्मस्य गीता श्लोक सुनाइए #Sad_Status #raah #ramji #Ta #Ya #Ma #L♥️ve #loV€fOR€v€R #Nojotoshayeri✍️M #L♥️ve भक्ति रिंगटोन भक्त

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#मोटिवेशनल #sad_shayari  White {Bolo Ji Radhey Radhey}
चाहे शगुन व निर्गुण रुप मे भगवान श्री कृष्ण जी की उपासना से गुणातीत ब्रह्म की प्राप्ति होती है। यों तो गुणातीत का वर्णन नित्य, ज्ञान, अनन्त आदि शब्दोंसे किया गया है पर वास्तव में उसका स्वरूप वाणीbद्वारा नहीं बताया जा सकता, वह तो अचिन्त्य और अनिर्वचनीय है। अन्तमें वेद भी 'नेति-नेति' कहकर ही बतलाता है। वह अनुमान प्रमाण से भी नहीं जाना जा सकता, केवल अनुभव रूप ही है। क्योंकि समस्त प्रमाण उस ब्रह्म के सकाश से ही सिद्ध होते हैं। श्रुति कहती है-

©N S Yadav GoldMine

#sad_shayari {Bolo Ji Radhey Radhey} चाहे शगुन व निर्गुण रुप मे भगवान श्री कृष्ण जी की उपासना से गुणातीत ब्रह्म की प्राप्ति होती है। यों तो

135 View

White गीत :- उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... छोड़ सभी वह रिश्ते-नाते, बैठे ऊँचे आसन पे । पहचाने इंसान नही जो , भाषण देते जीवन पे ।। जिसे खेलना पाप कहा था , मातु-पिता औ गुरुवर ने । उसी खेल का मिले प्रलोभन , सुन लो अब सरकारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव ..... मातु-पिता बिन कैसा जीवन , हमने पढ़ा किताबों में । ये बतलाते आकर हमको , दौलत नही हिसाबों में ।। इनके जैसा कभी न बनना , ये तो हैं खुद्दारों में । दया धर्म की टाँगें टूटी , इन सबके व्यापारो से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव.... नंगा नाच भरे आँगन में, इनके देख घरानों में । बेटी बेटा झूम रहे हैं , जाने किस-किस बाहों में ।। अपने घर को आप सँभाले, आया आज विचारों में । झाँक नही तू इनके घर को , पतन हुए संस्कारो से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव..... दौड़ रहे क्यों भूखे बच्चे , तेरे इन दरबारों में । क्या इनको तू मान लिया है , निर्गुण औ लाचारों में ।। बनकर दास रहे ये तेरा , करे भोग भण्डारों में । ऐसी सोच झलक कर आयी , जग के ठेकेदारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव ... बदलो मिलकर चाल सभी यह , प्रकृति बदलने वाली है । भूखे प्यासे लोगो की अब , आह निकलने वाली है । हमने वह आवाज सुनी है , चीखों और पुकारों से । आने वाले हैं हक लेने , देखो वह हथियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते वे अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White गीत :-
उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

छोड़ सभी वह रिश्ते-नाते, बैठे ऊँचे आसन पे ।
पहचाने इंसान नही जो , भाषण देते जीवन पे ।।
जिसे खेलना पाप कहा था , मातु-पिता औ गुरुवर ने ।
उसी खेल का मिले प्रलोभन , सुन लो अब सरकारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव .....

मातु-पिता बिन कैसा जीवन , हमने पढ़ा किताबों में ।
ये बतलाते आकर हमको , दौलत नही हिसाबों में ।।
इनके जैसा कभी न बनना , ये तो हैं खुद्दारों में ।
दया धर्म की टाँगें टूटी , इन सबके व्यापारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव....

नंगा नाच भरे आँगन में, इनके देख घरानों में ।
बेटी बेटा झूम रहे हैं , जाने किस-किस बाहों में ।।
अपने घर को आप सँभाले, आया आज विचारों में ।
झाँक नही तू इनके घर को , पतन हुए संस्कारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव.....

दौड़ रहे क्यों भूखे बच्चे , तेरे इन दरबारों में ।
क्या इनको तू मान लिया है , निर्गुण औ लाचारों में ।।
बनकर दास रहे ये तेरा , करे भोग भण्डारों में ।
ऐसी सोच झलक कर आयी , जग के ठेकेदारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ...

बदलो मिलकर चाल सभी यह , प्रकृति बदलने वाली है ।
भूखे प्यासे लोगो की अब , आह निकलने वाली है ।
हमने वह आवाज सुनी है , चीखों और पुकारों से ।
आने वाले हैं हक लेने , देखो वह हथियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते वे अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... छोड़ सभ

9 Love

White दोहा :- स्कूल सभी सरकार के , होने दो अब बन्द । बच्चे सब निर्गुण दिखे , शिक्षक ले आनंद ।। मातु-पिता क्यों शिष्य के , आज हुए है खिन्न । शिक्षा स्तर यह किसलिए , बोल हुआ है निम्न । कुछ बालक नादान है, मातु-पिता मजबूर । कुछ से शिक्षा आज भी , होती कोसो दूर ।। अब सरकारी स्कूल की , करना मत फरियाद । बच्चे प्राईवेट में , रखे नई बुनियाद ।। दिन आये ये याद क्यों , दिल पे किया प्रहार । नौकर बन सरकार के , करते आत्याचार ।। ऐसे लोगो की यहाँ , कौन करे परवाह । जो रख दौलत पास में , करे और की चाह ।। धन सम्पत व्यापार का , महत्व जो हो बन्द । गली-गली फिर देखना, मिल जायेंगे नन्द ।। ग्वाला अब जग में नही , दिखे रूप इंसान । मौका पाते आज जो , बन जाते शैतान ।। क्षमा याचना कर रहा , गुरुवर से इस बार । बुद्धि हीन की आप ही, हाथ रखो पतवार ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White दोहा :-
स्कूल सभी सरकार के , होने दो अब बन्द ।
बच्चे सब निर्गुण दिखे , शिक्षक ले आनंद ।।
मातु-पिता क्यों शिष्य के , आज हुए है खिन्न ।
शिक्षा स्तर यह किसलिए , बोल हुआ है निम्न ।
कुछ बालक नादान है, मातु-पिता मजबूर ।
कुछ से शिक्षा आज भी , होती कोसो दूर ।।
अब सरकारी स्कूल की , करना मत फरियाद ।
बच्चे प्राईवेट में , रखे नई बुनियाद ।।
दिन आये ये याद क्यों , दिल पे किया प्रहार ।
नौकर बन सरकार के , करते आत्याचार ।।
ऐसे लोगो की यहाँ , कौन करे परवाह ।
जो रख दौलत पास में , करे और की चाह ।।
धन सम्पत व्यापार का , महत्व जो हो बन्द ।
गली-गली फिर देखना, मिल जायेंगे नन्द ।।
ग्वाला अब जग में नही , दिखे रूप इंसान ।
मौका पाते आज जो , बन जाते शैतान ।।
क्षमा याचना कर रहा , गुरुवर से इस बार ।
बुद्धि हीन की आप ही, हाथ रखो पतवार ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- स्कूल सभी सरकार के , होने दो अब बन्द । बच्चे सब निर्गुण दिखे , शिक्षक ले आनंद ।। मातु-पिता क्यों शिष्य के , आज हुए है खिन्न । शिक्षा

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