White पल्लव की डायरी
बारह महीने,चौबीस घण्टे की भाषा
एक दिवस के रूप में मनायी जा रही है
जन जन की भाषा हिंदी को
जैसे श्रदांजलि दी जा रही है
डंडा,कौमा,बिंदी जैसे अलंकारों से शोभित
मातृभाषा को अपमानित कर
दोयमदर्जे की,कि जा रही है
कवि लेखक व्यंगकारो के
ह्रदय चक्षुओं को छूने वाली भाषा
लोप की जा रही है
ज्ञान के उच्चतम स्तर को छूने वाली भाषा
अंग्रेजी के सामने तौली जा रही है
जेंटिलमैन बनाना मकसद है अंग्रेजी का
मगर हिंदी,भावनाओं और आत्मा तक पहुँचती है
कितने कवि हुये अंग्रेजी के अब तक
जो मंचन साहित्यों का करते है
प्रवीण जैन पल्लव
©Praveen Jain "पल्लव"
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