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New झड़े सावन बसंत बहार Status, Photo, Video

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#कविता  बसंत की मंद सुगंध से,नैनो में यौवन जाग गया।
साजन के होंठों से सर्र-सर्र करता गीत भाग गया।।

मुुंडेर के ऊपर वो गौरी!केशो की घुंघराली थी,
दो मोतियों से मद की धारा,टप टप बहने वाली थी।

मनमोही मौसम से यौवन केे लिए मद जाग गया। 
साजन के होंठों से सर्र-सर्र करता गीत भाग गया।।

©Satish Kumar Meena

बसंत की मंद सुगन्ध

99 View

White बसंत के मौसम भी कभी-कभी आंखों में ख़्वाब ,पनपने नहीं देते, और इस उम्र निगोड़ी को, ये खुश गवार मौसम चैन से सोने नहीं देते। ©Anuj Ray

#शायरी  White बसंत के मौसम भी कभी-कभी
आंखों में ख़्वाब ,पनपने नहीं देते,

और इस उम्र निगोड़ी को, ये खुश 
गवार मौसम चैन से सोने नहीं देते।

©Anuj Ray

# बसंत के मौसम भी"

18 Love

White पल्लव की डायरी दायरे से बहार निकल लोग गुस्ताखी कर रहे है तृष्णा कभी,कम हुयी है कभी हरण सुख शांति का कर रहे है सामने वाला भी किरदार,हौसले रखता है मगर आचरणों की बानगी से बंधा है धूर्ततापूर्ण उतर आये है सियासत में लोग दंश और दहशत का जहर उगल रहे है सभ्यताओं को लांघ, निराशा चहुँ और परोस रहे है जंग जनता से कर, तख्त ताज कलंकित कर रहे है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव"

#कविता #nojotohindi #good_night  White पल्लव की डायरी
दायरे से बहार निकल
लोग गुस्ताखी कर रहे है
तृष्णा कभी,कम हुयी है कभी
हरण सुख शांति का कर रहे है
सामने वाला भी किरदार,हौसले रखता है
मगर आचरणों की बानगी से बंधा   है
धूर्ततापूर्ण उतर आये है सियासत में लोग
दंश और दहशत का जहर उगल रहे है
सभ्यताओं को लांघ,
 निराशा चहुँ और परोस रहे है
जंग जनता से कर,
तख्त ताज कलंकित कर रहे है
                                               प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"

#good_night दायरे से बहार निकल,लोग गुस्ताखी कर रहे है #nojotohindi

16 Love

#कविता #love_shayari

#love_shayari जहां सावन की कजली ना हो

207 View

#Videos

लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है

180 View

सावन डमरू घनाक्षरी (अमात्रिक छन्द) सरसत उपवन , हरषत जन जन , बरसत जब घन , गरज गरज कर । लख कर जलधर , हरषत हलधर , हरषत जलचर , नभचर थलचर । परत चरन जब , बहनन तब तब , बरसत नवरस , मनहर घर घर। सकल जगत जय , जय जय उचरत ,जपत कहत सब , बम बम हर हर। ©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'

#रक्षाबंधन #भक्ति #शिवजी #सावन  सावन
डमरू घनाक्षरी (अमात्रिक छन्द)

सरसत उपवन , हरषत जन जन , बरसत जब घन , गरज गरज कर ।
लख कर जलधर  , हरषत हलधर , हरषत जलचर , नभचर थलचर ।
परत चरन जब , बहनन तब तब , बरसत नवरस , मनहर घर घर।
सकल जगत जय , जय जय उचरत ,जपत कहत सब , बम बम हर हर।

©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'
#कविता  बसंत की मंद सुगंध से,नैनो में यौवन जाग गया।
साजन के होंठों से सर्र-सर्र करता गीत भाग गया।।

मुुंडेर के ऊपर वो गौरी!केशो की घुंघराली थी,
दो मोतियों से मद की धारा,टप टप बहने वाली थी।

मनमोही मौसम से यौवन केे लिए मद जाग गया। 
साजन के होंठों से सर्र-सर्र करता गीत भाग गया।।

©Satish Kumar Meena

बसंत की मंद सुगन्ध

99 View

White बसंत के मौसम भी कभी-कभी आंखों में ख़्वाब ,पनपने नहीं देते, और इस उम्र निगोड़ी को, ये खुश गवार मौसम चैन से सोने नहीं देते। ©Anuj Ray

#शायरी  White बसंत के मौसम भी कभी-कभी
आंखों में ख़्वाब ,पनपने नहीं देते,

और इस उम्र निगोड़ी को, ये खुश 
गवार मौसम चैन से सोने नहीं देते।

©Anuj Ray

# बसंत के मौसम भी"

18 Love

White पल्लव की डायरी दायरे से बहार निकल लोग गुस्ताखी कर रहे है तृष्णा कभी,कम हुयी है कभी हरण सुख शांति का कर रहे है सामने वाला भी किरदार,हौसले रखता है मगर आचरणों की बानगी से बंधा है धूर्ततापूर्ण उतर आये है सियासत में लोग दंश और दहशत का जहर उगल रहे है सभ्यताओं को लांघ, निराशा चहुँ और परोस रहे है जंग जनता से कर, तख्त ताज कलंकित कर रहे है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव"

#कविता #nojotohindi #good_night  White पल्लव की डायरी
दायरे से बहार निकल
लोग गुस्ताखी कर रहे है
तृष्णा कभी,कम हुयी है कभी
हरण सुख शांति का कर रहे है
सामने वाला भी किरदार,हौसले रखता है
मगर आचरणों की बानगी से बंधा   है
धूर्ततापूर्ण उतर आये है सियासत में लोग
दंश और दहशत का जहर उगल रहे है
सभ्यताओं को लांघ,
 निराशा चहुँ और परोस रहे है
जंग जनता से कर,
तख्त ताज कलंकित कर रहे है
                                               प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"

#good_night दायरे से बहार निकल,लोग गुस्ताखी कर रहे है #nojotohindi

16 Love

#कविता #love_shayari

#love_shayari जहां सावन की कजली ना हो

207 View

#Videos

लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है

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सावन डमरू घनाक्षरी (अमात्रिक छन्द) सरसत उपवन , हरषत जन जन , बरसत जब घन , गरज गरज कर । लख कर जलधर , हरषत हलधर , हरषत जलचर , नभचर थलचर । परत चरन जब , बहनन तब तब , बरसत नवरस , मनहर घर घर। सकल जगत जय , जय जय उचरत ,जपत कहत सब , बम बम हर हर। ©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'

#रक्षाबंधन #भक्ति #शिवजी #सावन  सावन
डमरू घनाक्षरी (अमात्रिक छन्द)

सरसत उपवन , हरषत जन जन , बरसत जब घन , गरज गरज कर ।
लख कर जलधर  , हरषत हलधर , हरषत जलचर , नभचर थलचर ।
परत चरन जब , बहनन तब तब , बरसत नवरस , मनहर घर घर।
सकल जगत जय , जय जय उचरत ,जपत कहत सब , बम बम हर हर।

©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'
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