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White नज़र हमेशा खुद की गलतियो पर भी रखो हमेशा सामने वाला ही गलत नहीं होता ©Updated Mirzapuri

#गलती #पीपल #good_night #SAD  White नज़र हमेशा 
खुद की गलतियो पर भी रखो 
हमेशा सामने वाला ही गलत नहीं होता

©Updated Mirzapuri

White त्रिपदा छन्द वट पीपल की छाँव । मिलती अपने गाँव । एक वही है ठाँव ।। शीतल चले बयार । रिमझिम पड़े फुहार । चलें गाँव इस बार ।। वह चाय की दुकान । उनका पास मकान । और हम मेहमान ।। सुनो सफल तब काज । मानो मेरी बात । जब दर्शन हो आज ।। धानी है परिधान । मुख पे है मुस्कान । यही एक पहचान ।। बड़ा मधुर परिवेश । कुछ पुल के अवशेष । जोगन वाला भेष ।। काले लम्बें केश । नाम सुनों विमलेश । चाहत उसमें शेष ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White त्रिपदा छन्द

वट पीपल की छाँव ।
मिलती अपने गाँव ।
एक वही है ठाँव ।।

शीतल चले बयार ।
रिमझिम पड़े फुहार ।
चलें गाँव इस बार ।।

वह चाय की दुकान ।
उनका पास मकान ।
और हम मेहमान ।।

सुनो सफल तब काज ।
मानो मेरी बात ।
जब दर्शन हो आज ।।

धानी है परिधान ।
मुख पे है मुस्कान ।
यही एक पहचान ।।


बड़ा मधुर परिवेश ।
कुछ पुल के अवशेष ।
जोगन वाला भेष ।।

काले लम्बें केश ।
नाम सुनों विमलेश ।
चाहत उसमें शेष ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

त्रिपदा छन्द वट पीपल की छाँव । मिलती अपने गाँव । एक वही है ठाँव ।।

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White नज़र हमेशा खुद की गलतियो पर भी रखो हमेशा सामने वाला ही गलत नहीं होता ©Updated Mirzapuri

#गलती #पीपल #good_night #SAD  White नज़र हमेशा 
खुद की गलतियो पर भी रखो 
हमेशा सामने वाला ही गलत नहीं होता

©Updated Mirzapuri

White त्रिपदा छन्द वट पीपल की छाँव । मिलती अपने गाँव । एक वही है ठाँव ।। शीतल चले बयार । रिमझिम पड़े फुहार । चलें गाँव इस बार ।। वह चाय की दुकान । उनका पास मकान । और हम मेहमान ।। सुनो सफल तब काज । मानो मेरी बात । जब दर्शन हो आज ।। धानी है परिधान । मुख पे है मुस्कान । यही एक पहचान ।। बड़ा मधुर परिवेश । कुछ पुल के अवशेष । जोगन वाला भेष ।। काले लम्बें केश । नाम सुनों विमलेश । चाहत उसमें शेष ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White त्रिपदा छन्द

वट पीपल की छाँव ।
मिलती अपने गाँव ।
एक वही है ठाँव ।।

शीतल चले बयार ।
रिमझिम पड़े फुहार ।
चलें गाँव इस बार ।।

वह चाय की दुकान ।
उनका पास मकान ।
और हम मेहमान ।।

सुनो सफल तब काज ।
मानो मेरी बात ।
जब दर्शन हो आज ।।

धानी है परिधान ।
मुख पे है मुस्कान ।
यही एक पहचान ।।


बड़ा मधुर परिवेश ।
कुछ पुल के अवशेष ।
जोगन वाला भेष ।।

काले लम्बें केश ।
नाम सुनों विमलेश ।
चाहत उसमें शेष ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

त्रिपदा छन्द वट पीपल की छाँव । मिलती अपने गाँव । एक वही है ठाँव ।।

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