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कभी मिले जो फुर्सत तो लिखेगें तेरी जफ़ा के क़िस्से सहर , अभी तो साहिल पे खङे हो कर लहर में डुबने का तमाशा बाक़ी है .... ©Arshu....

 कभी मिले जो फुर्सत तो लिखेगें तेरी जफ़ा  के क़िस्से सहर ,

अभी तो साहिल पे खङे हो कर  लहर में डुबने का तमाशा बाक़ी है ....

©Arshu....

कभी मिले जो फुर्सत तो लिखेगें तेरी जफ़ा के क़िस्से सहर , अभी तो साहिल पे खङे हो कर लहर में डुबने का तमाशा बाक़ी है🍃... @Mahi @Rajesh kohli

14 Love

#वीडियो

सीमावर्ती इलाके में हर्षोल्लास पूर्ण वातावरण में मनाया गया 78वां स्वतंत्रता दिवस बहराइच।आजादी की 78वां वर्षगांठ नेपाल सीमावर्ती इलाके में

99 View

White आज कविता जुल्मत-ए-सुबह से जग रही है पर सुंदर नहीं लग रही है न नहाने-खाने के कारण स्वतंत्रता के पुराने गाने गाने के कारण चिढ भी रही है वह। होकर नाराज़ नभ देख रही है और मैं उसकी आँखों में देखते-देखते दस बजे सजे पुस्तक-पन्नों के शब्दाें को फेसबुक; व्हाट्सएप; इंस्टाग्रामादि पर सजा रहा हूँ, "प्रसन्न बच्चों की आवाज़ें सर्वत्र गूँज रही हैं; सभी के लिए यह दिवा मेहमान है, पतंगों से सजा आसमान है, जिसकी ओर कविता का भी ध्यान है और उसकी ओर मेरा ध्यान है। लाल-पीली; हरी-नीली-पतंगें युद्ध-खेल खेल रही हैं अनंत आसमानी पानी और बादलों के बगीचे में मैंने देखा उन्हें कविता की आँखों से भरी पड़ी प्रत्येक छत है, प्रत्येक पतंग प्रतिस्पर्धा में रत है, कई किन्हीं इशारों पर नाच रही हैं, कई मुक्ति पाने-जाने के लिए छटपटा रहीं हैं, पिन्नी वाली फटी फटफटा रही हैं, कई मुक्त हुए जा रही हैं पश्चिम से पूर्व की ओर मस्ती में ठुमका लगाते हुए जा रही हैं अपने लक्ष्य की ओर तो कई कैदी बने रो रही हैं पक्के धागे के पिंजरे में, जिस प्रकार पक्षी (पतंग) अपने अंग-अंग को पटकते हैं पिजरे में बड़ी बेरहमी से फिर कविता की आँखों की नमी से पूछा मैंने कि क्या हुआ इससे आगे, क्या टूट गये वे सारे धागे? कविता ने कहा, "टूट ही जायेंगे कभी-न-कभी पतंगों के धागे, टूट ही जायेंगे कभी-न-कभी भिन्न-भिन्न रंगों के धागे। है आवश्यक अभी कि काश टूट जाते बुराई के धागे!!" . ...✍️विकास साहनी ©Vikas Sahni

#पतंगों_के_प्रति #कविता  White 
आज कविता जुल्मत-ए-सुबह से जग रही है
पर सुंदर नहीं लग रही है
न नहाने-खाने के कारण
स्वतंत्रता के पुराने गाने गाने के कारण
चिढ भी रही है वह।
होकर नाराज़ नभ देख रही है
और मैं उसकी आँखों में 
देखते-देखते दस बजे सजे
पुस्तक-पन्नों के शब्दाें को फेसबुक; व्हाट्सएप; इंस्टाग्रामादि पर सजा रहा हूँ,
"प्रसन्न बच्चों की आवाज़ें सर्वत्र गूँज रही हैं;
सभी के लिए यह दिवा मेहमान है,
पतंगों से सजा आसमान है,
जिसकी ओर कविता का भी ध्यान है
और उसकी ओर मेरा ध्यान है।
लाल-पीली; हरी-नीली-पतंगें युद्ध-खेल खेल रही हैं
अनंत आसमानी पानी  और बादलों के बगीचे में
मैंने देखा उन्हें कविता की आँखों से
भरी पड़ी प्रत्येक छत है,
प्रत्येक पतंग प्रतिस्पर्धा में रत है,
कई किन्हीं इशारों पर नाच रही हैं,
कई मुक्ति पाने-जाने के लिए छटपटा रहीं हैं,
पिन्नी वाली फटी फटफटा रही हैं,
कई मुक्त हुए जा रही हैं
पश्चिम से पूर्व की ओर मस्ती में ठुमका लगाते हुए
जा रही हैं अपने लक्ष्य की ओर
तो कई कैदी बने रो रही हैं पक्के धागे के पिंजरे में,
जिस प्रकार पक्षी (पतंग)
अपने अंग-अंग को पटकते हैं पिजरे में बड़ी बेरहमी से
फिर कविता की आँखों की नमी से
पूछा मैंने कि क्या हुआ इससे आगे,
क्या टूट गये वे सारे धागे?
कविता ने कहा, "टूट ही जायेंगे कभी-न-कभी पतंगों के धागे,
टूट ही जायेंगे कभी-न-कभी भिन्न-भिन्न रंगों के धागे।
है आवश्यक अभी कि काश टूट जाते बुराई के धागे!!"
     .                      ...✍️विकास साहनी

©Vikas Sahni

#पतंगों_के_प्रति आज कविता जुल्मत-ए-सुबह से जग रही है पर सुंदर नहीं लग रही है न नहाने-खाने के कारण स्वतंत्रता के पुराने गाने गाने के कारण चिढ

13 Love

White आओ करे प्रकृति संरक्षण :- गीत आओ करें प्रकृति संरक्षण , मन में उठा विचार । नहीं काटना वृक्षों को अब , ले करके हथियार ।। आओ करे प्रकृति संरक्षण ... जैसे धरा बनी है जग में , देख अब सृजनहार । जो बीज गिरे उन फसलों से , वह अंकुर हैं बार ।। यह प्रमाण न परिणाम है , सुनो है चमत्कार । आओ धरती माँ से सीखे , करना यह व्यवहार ।। नहीं काटना वृक्षों को अब .. एक-एक पौधे जो रोपे , होंगे लाख हजार । तभी बनेगी सृष्टि हमारी ,  जीवन का आधार ।। इस धरती के संग सभी , पोषित हो इस बार । यही कामना मन में लेकर , दिया वृक्ष उपहार ।। आओ करें प्रकृति संरक्षण .... छोटे बड़े लगाओ पौधे , सबको दो स्थान । दूब धतूरा शरपत कासा , सबका अपना मान ।। सब ही जीवन अंग बने हैं ,मन से कर स्वीकार । प्रभु ने मानव रूप दिया है , करो नही व्यापार । आओ करे प्रकृति संरक्षण .... आओ करें प्रकृति संरक्षण , मन में उठा विचार । नहीं काटना वृक्षों को अब , ले करके हथियार ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White आओ करे प्रकृति संरक्षण :- गीत

आओ करें प्रकृति संरक्षण , मन में उठा विचार ।
नहीं काटना वृक्षों को अब , ले करके हथियार ।।
आओ करे प्रकृति संरक्षण ...

जैसे धरा बनी है जग में , देख अब सृजनहार ।
जो बीज गिरे उन फसलों से , वह अंकुर हैं बार ।।
यह प्रमाण न परिणाम है , सुनो है चमत्कार ।
आओ धरती माँ से सीखे , करना यह व्यवहार ।।
नहीं काटना वृक्षों को अब ..

एक-एक पौधे जो रोपे , होंगे लाख हजार ।
तभी बनेगी सृष्टि हमारी ,  जीवन का आधार ।।
इस धरती के संग सभी , पोषित हो इस बार ।
यही कामना मन में लेकर , दिया वृक्ष उपहार ।।
आओ करें प्रकृति संरक्षण ....

छोटे बड़े लगाओ पौधे , सबको दो स्थान ।
दूब धतूरा शरपत कासा , सबका अपना मान ।।
सब ही जीवन अंग बने हैं ,मन से कर स्वीकार ।
प्रभु ने मानव रूप दिया है , करो नही व्यापार ।
आओ करे प्रकृति संरक्षण ....

आओ करें प्रकृति संरक्षण , मन में उठा विचार ।
नहीं काटना वृक्षों को अब , ले करके हथियार ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

आओ करे प्रकृति संरक्षण :- गीत आओ करें प्रकृति संरक्षण , मन में उठा विचार । नहीं काटना वृक्षों को अब , ले करके हथियार ।। आओ करे प्रकृति संरक

10 Love

#कविता  White उम्मीद बाक़ी है"

रुकी नहीं है हौसलों की उड़ान,
बस ज़रा सी रफ़्तार कम हुई है।

हमारा संकल्प मातृभूमि की सेवा,
आखरी सांस तक उम्मीद बाकी है।

धोखे को जीत का जश्न न समझें,
ये झूठे षड्यंत्र की एक झांकी है।

 इन्कलाब आएगा जरूर, बस उस
 दिन को देखने इंतज़ार बाकी है।

©Anuj Ray

# उम्मीद बाक़ी है "

90 View

 White तरणिजा के तट घूमें, 
कलाकेतु हिमकर की
सलिल सा अंग सजे,
सुन्दरता है इन्दिवर की
तारापथ अयनशाला बन,
वातनेय सी उड़ान भर
मन्दाकिनी की मुस्कान,
चंचला में विभावरी रात
सुषमा देख दृश्य भर ही
हिलोर उठी मधुकर की

©Shilpa Yadav

#wallpaper#Shilpayadavpoetry#wallpaperzone #कविता कोश# बारिश पर कविता हिंदी #कविता#naturepoetry ANOOP PANDEY अज्ञात vineetapanchal Neel

801 View

कभी मिले जो फुर्सत तो लिखेगें तेरी जफ़ा के क़िस्से सहर , अभी तो साहिल पे खङे हो कर लहर में डुबने का तमाशा बाक़ी है .... ©Arshu....

 कभी मिले जो फुर्सत तो लिखेगें तेरी जफ़ा  के क़िस्से सहर ,

अभी तो साहिल पे खङे हो कर  लहर में डुबने का तमाशा बाक़ी है ....

©Arshu....

कभी मिले जो फुर्सत तो लिखेगें तेरी जफ़ा के क़िस्से सहर , अभी तो साहिल पे खङे हो कर लहर में डुबने का तमाशा बाक़ी है🍃... @Mahi @Rajesh kohli

14 Love

#वीडियो

सीमावर्ती इलाके में हर्षोल्लास पूर्ण वातावरण में मनाया गया 78वां स्वतंत्रता दिवस बहराइच।आजादी की 78वां वर्षगांठ नेपाल सीमावर्ती इलाके में

99 View

White आज कविता जुल्मत-ए-सुबह से जग रही है पर सुंदर नहीं लग रही है न नहाने-खाने के कारण स्वतंत्रता के पुराने गाने गाने के कारण चिढ भी रही है वह। होकर नाराज़ नभ देख रही है और मैं उसकी आँखों में देखते-देखते दस बजे सजे पुस्तक-पन्नों के शब्दाें को फेसबुक; व्हाट्सएप; इंस्टाग्रामादि पर सजा रहा हूँ, "प्रसन्न बच्चों की आवाज़ें सर्वत्र गूँज रही हैं; सभी के लिए यह दिवा मेहमान है, पतंगों से सजा आसमान है, जिसकी ओर कविता का भी ध्यान है और उसकी ओर मेरा ध्यान है। लाल-पीली; हरी-नीली-पतंगें युद्ध-खेल खेल रही हैं अनंत आसमानी पानी और बादलों के बगीचे में मैंने देखा उन्हें कविता की आँखों से भरी पड़ी प्रत्येक छत है, प्रत्येक पतंग प्रतिस्पर्धा में रत है, कई किन्हीं इशारों पर नाच रही हैं, कई मुक्ति पाने-जाने के लिए छटपटा रहीं हैं, पिन्नी वाली फटी फटफटा रही हैं, कई मुक्त हुए जा रही हैं पश्चिम से पूर्व की ओर मस्ती में ठुमका लगाते हुए जा रही हैं अपने लक्ष्य की ओर तो कई कैदी बने रो रही हैं पक्के धागे के पिंजरे में, जिस प्रकार पक्षी (पतंग) अपने अंग-अंग को पटकते हैं पिजरे में बड़ी बेरहमी से फिर कविता की आँखों की नमी से पूछा मैंने कि क्या हुआ इससे आगे, क्या टूट गये वे सारे धागे? कविता ने कहा, "टूट ही जायेंगे कभी-न-कभी पतंगों के धागे, टूट ही जायेंगे कभी-न-कभी भिन्न-भिन्न रंगों के धागे। है आवश्यक अभी कि काश टूट जाते बुराई के धागे!!" . ...✍️विकास साहनी ©Vikas Sahni

#पतंगों_के_प्रति #कविता  White 
आज कविता जुल्मत-ए-सुबह से जग रही है
पर सुंदर नहीं लग रही है
न नहाने-खाने के कारण
स्वतंत्रता के पुराने गाने गाने के कारण
चिढ भी रही है वह।
होकर नाराज़ नभ देख रही है
और मैं उसकी आँखों में 
देखते-देखते दस बजे सजे
पुस्तक-पन्नों के शब्दाें को फेसबुक; व्हाट्सएप; इंस्टाग्रामादि पर सजा रहा हूँ,
"प्रसन्न बच्चों की आवाज़ें सर्वत्र गूँज रही हैं;
सभी के लिए यह दिवा मेहमान है,
पतंगों से सजा आसमान है,
जिसकी ओर कविता का भी ध्यान है
और उसकी ओर मेरा ध्यान है।
लाल-पीली; हरी-नीली-पतंगें युद्ध-खेल खेल रही हैं
अनंत आसमानी पानी  और बादलों के बगीचे में
मैंने देखा उन्हें कविता की आँखों से
भरी पड़ी प्रत्येक छत है,
प्रत्येक पतंग प्रतिस्पर्धा में रत है,
कई किन्हीं इशारों पर नाच रही हैं,
कई मुक्ति पाने-जाने के लिए छटपटा रहीं हैं,
पिन्नी वाली फटी फटफटा रही हैं,
कई मुक्त हुए जा रही हैं
पश्चिम से पूर्व की ओर मस्ती में ठुमका लगाते हुए
जा रही हैं अपने लक्ष्य की ओर
तो कई कैदी बने रो रही हैं पक्के धागे के पिंजरे में,
जिस प्रकार पक्षी (पतंग)
अपने अंग-अंग को पटकते हैं पिजरे में बड़ी बेरहमी से
फिर कविता की आँखों की नमी से
पूछा मैंने कि क्या हुआ इससे आगे,
क्या टूट गये वे सारे धागे?
कविता ने कहा, "टूट ही जायेंगे कभी-न-कभी पतंगों के धागे,
टूट ही जायेंगे कभी-न-कभी भिन्न-भिन्न रंगों के धागे।
है आवश्यक अभी कि काश टूट जाते बुराई के धागे!!"
     .                      ...✍️विकास साहनी

©Vikas Sahni

#पतंगों_के_प्रति आज कविता जुल्मत-ए-सुबह से जग रही है पर सुंदर नहीं लग रही है न नहाने-खाने के कारण स्वतंत्रता के पुराने गाने गाने के कारण चिढ

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White आओ करे प्रकृति संरक्षण :- गीत आओ करें प्रकृति संरक्षण , मन में उठा विचार । नहीं काटना वृक्षों को अब , ले करके हथियार ।। आओ करे प्रकृति संरक्षण ... जैसे धरा बनी है जग में , देख अब सृजनहार । जो बीज गिरे उन फसलों से , वह अंकुर हैं बार ।। यह प्रमाण न परिणाम है , सुनो है चमत्कार । आओ धरती माँ से सीखे , करना यह व्यवहार ।। नहीं काटना वृक्षों को अब .. एक-एक पौधे जो रोपे , होंगे लाख हजार । तभी बनेगी सृष्टि हमारी ,  जीवन का आधार ।। इस धरती के संग सभी , पोषित हो इस बार । यही कामना मन में लेकर , दिया वृक्ष उपहार ।। आओ करें प्रकृति संरक्षण .... छोटे बड़े लगाओ पौधे , सबको दो स्थान । दूब धतूरा शरपत कासा , सबका अपना मान ।। सब ही जीवन अंग बने हैं ,मन से कर स्वीकार । प्रभु ने मानव रूप दिया है , करो नही व्यापार । आओ करे प्रकृति संरक्षण .... आओ करें प्रकृति संरक्षण , मन में उठा विचार । नहीं काटना वृक्षों को अब , ले करके हथियार ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White आओ करे प्रकृति संरक्षण :- गीत

आओ करें प्रकृति संरक्षण , मन में उठा विचार ।
नहीं काटना वृक्षों को अब , ले करके हथियार ।।
आओ करे प्रकृति संरक्षण ...

जैसे धरा बनी है जग में , देख अब सृजनहार ।
जो बीज गिरे उन फसलों से , वह अंकुर हैं बार ।।
यह प्रमाण न परिणाम है , सुनो है चमत्कार ।
आओ धरती माँ से सीखे , करना यह व्यवहार ।।
नहीं काटना वृक्षों को अब ..

एक-एक पौधे जो रोपे , होंगे लाख हजार ।
तभी बनेगी सृष्टि हमारी ,  जीवन का आधार ।।
इस धरती के संग सभी , पोषित हो इस बार ।
यही कामना मन में लेकर , दिया वृक्ष उपहार ।।
आओ करें प्रकृति संरक्षण ....

छोटे बड़े लगाओ पौधे , सबको दो स्थान ।
दूब धतूरा शरपत कासा , सबका अपना मान ।।
सब ही जीवन अंग बने हैं ,मन से कर स्वीकार ।
प्रभु ने मानव रूप दिया है , करो नही व्यापार ।
आओ करे प्रकृति संरक्षण ....

आओ करें प्रकृति संरक्षण , मन में उठा विचार ।
नहीं काटना वृक्षों को अब , ले करके हथियार ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

आओ करे प्रकृति संरक्षण :- गीत आओ करें प्रकृति संरक्षण , मन में उठा विचार । नहीं काटना वृक्षों को अब , ले करके हथियार ।। आओ करे प्रकृति संरक

10 Love

#कविता  White उम्मीद बाक़ी है"

रुकी नहीं है हौसलों की उड़ान,
बस ज़रा सी रफ़्तार कम हुई है।

हमारा संकल्प मातृभूमि की सेवा,
आखरी सांस तक उम्मीद बाकी है।

धोखे को जीत का जश्न न समझें,
ये झूठे षड्यंत्र की एक झांकी है।

 इन्कलाब आएगा जरूर, बस उस
 दिन को देखने इंतज़ार बाकी है।

©Anuj Ray

# उम्मीद बाक़ी है "

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 White तरणिजा के तट घूमें, 
कलाकेतु हिमकर की
सलिल सा अंग सजे,
सुन्दरता है इन्दिवर की
तारापथ अयनशाला बन,
वातनेय सी उड़ान भर
मन्दाकिनी की मुस्कान,
चंचला में विभावरी रात
सुषमा देख दृश्य भर ही
हिलोर उठी मधुकर की

©Shilpa Yadav

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