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हर चेहरे के पीछे एक और चेहरा हो गया है क्या दौर आ गया है दोस्तों.... जब कोई छिपा रहा है दर्द अपना तो कोई अपनी फ़ितरत छिपा रहा है ©हिमांशु Kulshreshtha

#SAD  हर चेहरे के पीछे
एक और चेहरा हो गया है
क्या दौर आ गया है दोस्तों.... 
जब कोई छिपा रहा है दर्द अपना
तो कोई अपनी फ़ितरत छिपा रहा है

©हिमांशु Kulshreshtha

हर चेहरे के पीछे..

17 Love

#doubleface #Hindi

पीठ पीछे बुराई करता है #doubleface #Nojoto #Hindi

135 View

#Quotes  White मुड़कर अब पीछे देखूँगी नहीं नए सफ़र में , 

जो छूट गया पीछे वो मेरा हमसफ़र कभी था ही नहीं।

©Vandana Rana

मुड़कर अब पीछे देखूँगी नहीं नए सफ़र में , जो छूट गया पीछे वो मेरा हमसफ़र कभी था ही नहीं।

108 View

#कविता #love_shayari

#love_shayari खेलकूद में पीछे थे

117 View

#कविता  White मुझे मालूम है 
तुम पर्दों के 
पीछे से भी मुझे टकटकी बांधे 
देख रहीं थीं 


ज़ाहिर है तुम्हे सामने आकर मिलने मे शर्म महसूस हो रहीं 
लेकिन सच तो यह है कि  शर्म गैरों 
क़ी जाती है  अपनों से नही

©Parasram Arora

पर्दों के पीछे

144 View

#विचार #love_shayari  White आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे साझा कर दूं, क्योंकि हो सकता है कि आपने भी ऐसा किया हो। जब हम बचपन में अंधेरे से डरते थे, और हमें रात को किसी काम से बाहर भेजा जाता था, या फिर किसी पड़ोसी के घर पर खेलते-खेलते देर हो जाती थी और अंधेरा छा जाने के कारण डर लगने लगता था, लेकिन घर भी तो जाना था।

तो हम अपने ताऊजी, मां, काकी, या दादी से कहते थे कि "घर छोड़ कर आ जाओ।" और वे कहते, "हां, चलो छोड़ आते हैं।" जब घर का मोड़ आता तो वे कहते, "अब चल जा," लेकिन डर तो लग रहा होता था। तो हम कहते, "आप यहीं रुकना," और वे बोलते, "मैं यहीं हूँ, तेरा नाम बोलते रहूंगा।"

जब तक वे हमारा नाम लेते रहते थे और जब तक हम घर नहीं पहुंच जाते थे, हमें यह विश्वास होता था कि वे हमारे साथ ही हैं, भले ही वे घर लौट चुके होते। लेकिन जब तक हमारा दरवाजा नहीं खुलता था, तब तक डर लगता था कि कोई हमें पीछे से पकड़ न ले। और जैसे ही दरवाज़ा खुलता, हम फटाफट घर के अंदर भाग जाते थे।

फिर, जब घर के अंधेरे में चबूतरे से पानी लाने के लिए कहा जाता था, तो हम बच्चों में डर के कारण यह कहते, "नहीं, पहले तू जा, पहले तू जा।" एक-दूसरे को "डरपोक" भी कहते थे, लेकिन सभी डरते थे। पर जाना तो उसी को होता था, जिसे मम्मी-पापा कहते थे। वह डर के मारे कहता, "आप चलो मेरे साथ," और वे कहते, "नहीं, तुम जाओ, तुम तो मेरे बहादुर बच्चे हो। मैं तुम्हारा नाम पुकारूंगा।" और फिर जब वह पानी लेकर आता, तो वे कहते, "देखो, डर नहीं लगा न?"

लेकिन सच कहूं तो डर जरूर लगता था। पर यही ट्रिक हम दूसरे पर आजमाते थे। आज देखो, हम और हमारे बच्चे क्या डरेंगे, वे तो डर को ही डरा देंगे! 😂 बातें बहुत ज्यादा हो गई हैं, कुछ को फालतू भी लग सकती हैं, लेकिन हमारे बचपन में हर घर में हर बच्चे के साथ यही होता था। अब आपकी प्रतिक्रिया देने की बारी है। क्या आपके साथ भी यही हुआ 

ChatGPT can make

©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma

कैप्शन में पढ़े 🤳 आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे

171 View

हर चेहरे के पीछे एक और चेहरा हो गया है क्या दौर आ गया है दोस्तों.... जब कोई छिपा रहा है दर्द अपना तो कोई अपनी फ़ितरत छिपा रहा है ©हिमांशु Kulshreshtha

#SAD  हर चेहरे के पीछे
एक और चेहरा हो गया है
क्या दौर आ गया है दोस्तों.... 
जब कोई छिपा रहा है दर्द अपना
तो कोई अपनी फ़ितरत छिपा रहा है

©हिमांशु Kulshreshtha

हर चेहरे के पीछे..

17 Love

#doubleface #Hindi

पीठ पीछे बुराई करता है #doubleface #Nojoto #Hindi

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#Quotes  White मुड़कर अब पीछे देखूँगी नहीं नए सफ़र में , 

जो छूट गया पीछे वो मेरा हमसफ़र कभी था ही नहीं।

©Vandana Rana

मुड़कर अब पीछे देखूँगी नहीं नए सफ़र में , जो छूट गया पीछे वो मेरा हमसफ़र कभी था ही नहीं।

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#कविता #love_shayari

#love_shayari खेलकूद में पीछे थे

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#कविता  White मुझे मालूम है 
तुम पर्दों के 
पीछे से भी मुझे टकटकी बांधे 
देख रहीं थीं 


ज़ाहिर है तुम्हे सामने आकर मिलने मे शर्म महसूस हो रहीं 
लेकिन सच तो यह है कि  शर्म गैरों 
क़ी जाती है  अपनों से नही

©Parasram Arora

पर्दों के पीछे

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#विचार #love_shayari  White आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे साझा कर दूं, क्योंकि हो सकता है कि आपने भी ऐसा किया हो। जब हम बचपन में अंधेरे से डरते थे, और हमें रात को किसी काम से बाहर भेजा जाता था, या फिर किसी पड़ोसी के घर पर खेलते-खेलते देर हो जाती थी और अंधेरा छा जाने के कारण डर लगने लगता था, लेकिन घर भी तो जाना था।

तो हम अपने ताऊजी, मां, काकी, या दादी से कहते थे कि "घर छोड़ कर आ जाओ।" और वे कहते, "हां, चलो छोड़ आते हैं।" जब घर का मोड़ आता तो वे कहते, "अब चल जा," लेकिन डर तो लग रहा होता था। तो हम कहते, "आप यहीं रुकना," और वे बोलते, "मैं यहीं हूँ, तेरा नाम बोलते रहूंगा।"

जब तक वे हमारा नाम लेते रहते थे और जब तक हम घर नहीं पहुंच जाते थे, हमें यह विश्वास होता था कि वे हमारे साथ ही हैं, भले ही वे घर लौट चुके होते। लेकिन जब तक हमारा दरवाजा नहीं खुलता था, तब तक डर लगता था कि कोई हमें पीछे से पकड़ न ले। और जैसे ही दरवाज़ा खुलता, हम फटाफट घर के अंदर भाग जाते थे।

फिर, जब घर के अंधेरे में चबूतरे से पानी लाने के लिए कहा जाता था, तो हम बच्चों में डर के कारण यह कहते, "नहीं, पहले तू जा, पहले तू जा।" एक-दूसरे को "डरपोक" भी कहते थे, लेकिन सभी डरते थे। पर जाना तो उसी को होता था, जिसे मम्मी-पापा कहते थे। वह डर के मारे कहता, "आप चलो मेरे साथ," और वे कहते, "नहीं, तुम जाओ, तुम तो मेरे बहादुर बच्चे हो। मैं तुम्हारा नाम पुकारूंगा।" और फिर जब वह पानी लेकर आता, तो वे कहते, "देखो, डर नहीं लगा न?"

लेकिन सच कहूं तो डर जरूर लगता था। पर यही ट्रिक हम दूसरे पर आजमाते थे। आज देखो, हम और हमारे बच्चे क्या डरेंगे, वे तो डर को ही डरा देंगे! 😂 बातें बहुत ज्यादा हो गई हैं, कुछ को फालतू भी लग सकती हैं, लेकिन हमारे बचपन में हर घर में हर बच्चे के साथ यही होता था। अब आपकी प्रतिक्रिया देने की बारी है। क्या आपके साथ भी यही हुआ 

ChatGPT can make

©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma

कैप्शन में पढ़े 🤳 आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे

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