tags

New 2 lives Status, Photo, Video

Find the latest Status about 2 lives from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about 2 lives.

  • Latest
  • Popular
  • Video

किताब मेरी, पन्ने भी मेरे, और सोच भी मेरी, फिर मैंने जो लिखें... वो ख्याल आपका क्यों..? ©@rajgini

#SAD  किताब मेरी, पन्ने भी मेरे, 
और सोच भी मेरी, फिर मैंने जो लिखें... 
वो ख्याल आपका क्यों..?

©@rajgini

Day 2

38 Love

प्यार मैंने फोटू डाला लाईक आया तभी आज कैसे मन तुने बना लिया पवी प्यार के लिए पूछा है बार- बार मैंने तेरा जवाब लौटकर आया ना कभी ©DANVEER SINGH DUNIYA

 प्यार मैंने फोटू डाला लाईक आया तभी
आज कैसे मन तुने बना लिया पवी
प्यार के लिए पूछा है बार- बार मैंने
 तेरा जवाब लौटकर आया ना कभी

©DANVEER SINGH DUNIYA

2

14 Love

अब तुम्हें कैसे बताएं तेरे जमीर को बेचकर खुद को बचा लूं इतना गिरा नहीं हूं सांसें बेशक बहुत तेज चल रही हो पागल अभी मरा नहीं हूं तूं कहती है ना तकलीफ देने के सिवाय कुछ काम नहीं है सारे घाव दिखा दिये मैंने फिर भी तुझको मैं दिखा नही हूं ©DANVEER SINGH DUNIYA

#SAD  अब तुम्हें कैसे बताएं तेरे जमीर को बेचकर खुद को बचा लूं इतना गिरा नहीं हूं
    सांसें बेशक बहुत तेज चल रही हो पागल अभी मरा नहीं हूं 
 तूं कहती है ना तकलीफ देने के सिवाय कुछ काम नहीं है
   सारे घाव दिखा दिये मैंने फिर भी तुझको मैं दिखा नही हूं

©DANVEER SINGH DUNIYA

sad 2

16 Love

#Videos

stree 2

99 View

#Videos

Part-2

117 View

#Emancipation #consequences #yourquote #energy #Viraaj #lives  Every inanimate being born on this earth is present in the direction and intensive continuity of deeds and is also trapped and afflicted by every physical phenomenon and its concupiscence resulting from its excluding and including consequences. It is a supreme belief and doctrine of the profound law of living mainstream.

One day or another, every aliveful energy is destined to be liberated and contained in the nothingness of this entire universe by merging into some infinite divinity. This is not an improbable and unthinking verb; it is about the case of imposing materialism maturely.

All this is possible in the absence or impendence of doings, but emancipation is implausible, unthinkable, and impracticable by turning away from all these or by self-reunification with attendance methods. No one can achieve perfection at all in this.

©Viraaj Sisodiya

किताब मेरी, पन्ने भी मेरे, और सोच भी मेरी, फिर मैंने जो लिखें... वो ख्याल आपका क्यों..? ©@rajgini

#SAD  किताब मेरी, पन्ने भी मेरे, 
और सोच भी मेरी, फिर मैंने जो लिखें... 
वो ख्याल आपका क्यों..?

©@rajgini

Day 2

38 Love

प्यार मैंने फोटू डाला लाईक आया तभी आज कैसे मन तुने बना लिया पवी प्यार के लिए पूछा है बार- बार मैंने तेरा जवाब लौटकर आया ना कभी ©DANVEER SINGH DUNIYA

 प्यार मैंने फोटू डाला लाईक आया तभी
आज कैसे मन तुने बना लिया पवी
प्यार के लिए पूछा है बार- बार मैंने
 तेरा जवाब लौटकर आया ना कभी

©DANVEER SINGH DUNIYA

2

14 Love

अब तुम्हें कैसे बताएं तेरे जमीर को बेचकर खुद को बचा लूं इतना गिरा नहीं हूं सांसें बेशक बहुत तेज चल रही हो पागल अभी मरा नहीं हूं तूं कहती है ना तकलीफ देने के सिवाय कुछ काम नहीं है सारे घाव दिखा दिये मैंने फिर भी तुझको मैं दिखा नही हूं ©DANVEER SINGH DUNIYA

#SAD  अब तुम्हें कैसे बताएं तेरे जमीर को बेचकर खुद को बचा लूं इतना गिरा नहीं हूं
    सांसें बेशक बहुत तेज चल रही हो पागल अभी मरा नहीं हूं 
 तूं कहती है ना तकलीफ देने के सिवाय कुछ काम नहीं है
   सारे घाव दिखा दिये मैंने फिर भी तुझको मैं दिखा नही हूं

©DANVEER SINGH DUNIYA

sad 2

16 Love

#Videos

stree 2

99 View

#Videos

Part-2

117 View

#Emancipation #consequences #yourquote #energy #Viraaj #lives  Every inanimate being born on this earth is present in the direction and intensive continuity of deeds and is also trapped and afflicted by every physical phenomenon and its concupiscence resulting from its excluding and including consequences. It is a supreme belief and doctrine of the profound law of living mainstream.

One day or another, every aliveful energy is destined to be liberated and contained in the nothingness of this entire universe by merging into some infinite divinity. This is not an improbable and unthinking verb; it is about the case of imposing materialism maturely.

All this is possible in the absence or impendence of doings, but emancipation is implausible, unthinkable, and impracticable by turning away from all these or by self-reunification with attendance methods. No one can achieve perfection at all in this.

©Viraaj Sisodiya
Trending Topic