संगीत सी ये मीठी बारिश... सरगम जैसी लगती हैं
पल्लव के ये बहुत प्यारे , तुम तो प्रेमिका सी लगती हो....
कौन गाये करूण कथाएं , तुम तो यौवन सी थिरकती हो
काशी में मणिकर्णिका... क्या तुम उसके जैसी लगती हो
खिला ग़ुलाब चंपा चमेली,
मादकता सी लगती हो
अधरों पर मीठी मुस्कान,
खिली पंखुड़ियों जैसी लगती हो
वीरों के पथ कोमल शोभा सुसज्जित हो,
खुद मरने को तत्पर रहती हो
संगीत सी ये मीठी बारिश... सरगम जैसी लगती है
पल्लव के ये बहुत प्यारे, तुम तो प्रेमिका सी लगती हो.....
जाए के ये धनी माटी, सोना सपूत उपजाती हो
तपती मरती विमुक्त जनों से, फिर भी हरियाली से भरी हुई रहती हो
वो श्रंगार बारिशें का , उसमें तो ज्यादा ही जंचती हो
जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी तुम लगती हो.....
गांवों के किसान तेरे , जैसे पहली मुहब्बत सी लगती हो
वो दूर से तुझे निहारें , तुम तो मृगतृष्णा सी क्यों लगती हो
छीन क्यों तुम लेती हो , तनय सुख क्यों नहीं जीने देती हो
तेरे मिट्टी में मैं मिल जावा, उस पागल से क्यों कहलाती हो
न मिले तुझे दिल ए बारिशें, रक्तों की तुम केवल प्यासी हो
अगर दिल तेरा भर जाएं तो एक दफा तुम सावन बुलाना
रिमझिम रिमझिम बारिश बरसें यौवन की विरह तुम पा जाना
संगीत सी ये मीठी बारिश... सरगम जैसी लगती हैं
पल्लव के ये बहुत प्यारे , तुम तो प्रेमिका सी लगती हो........
©Dev Rishi
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