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New अंजनीच्या सुता तुला रामाचे Status, Photo, Video

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जब पता है कि जब भी तू मुंह खोलता है, गटर की बहता है तो फिर क्यों सबकी ज़िन्दगी नाला करने पर तुला है..! ©Himanshu Prajapati

#विचार #hpstrange #36gyan #Funny  जब पता है कि 
जब भी तू मुंह खोलता है,
गटर की बहता है 
तो फिर क्यों सबकी ज़िन्दगी 
नाला करने पर तुला है..!

©Himanshu Prajapati

#Funny जब पता है कि जब भी तू मुंह खोलता है, गटर की बहता है तो फिर क्यों सबकी ज़िन्दगी नाला करने पर तुला है..! #hpstrange #36gyan

17 Love

*विधा     सरसी छन्द आधारित गीत* आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी .... पूर्ण हुई वह खुशियाँ सारी , जो थी मन में चाह । खूब कमाकर पैसा सोचा , करूँ सुता का ब्याह ।। आज उन्हीं बच्चों ने बोला , क्यों करते हो काँव । जिनकी खातिर ठुकरा आया, मातु-पिता की ठाँव । आओ लौट चलें अब साथी ..... स्वार्थ रहित जीवन जीने से , मरना उच्च उपाय । सुख की चाह लिए भागा मैं, और बढ़ाऊँ आय ।। यह जीवन मिथ्या कर डाला , पाया संग तनाव । देख मनुज से पशु बन बैठा , डालो गले गराँव ।। आओ लौट चलें अब साथी.... भूल गया मिट्टी के घर को , किया नहीं परवाह । मिला प्रेम था मातु-पिता से , लगा न पाया थाह ।। अच्छा रहना अच्छा खाना , मन में था ठहराव । सारा जीवन लगा दिया मैं , इन बच्चों पर दाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी ..... झुकी कमर कहती है हमसे , मिटी हाथ की रेख । गर्दन भी ये अब न न  करती ,लोग रहे सब देख ।। वो सब हँसते हम पछताते, इतने हैं बदलाव । मूर्ख बना हूँ छोड़ गाँव को , बदली जीवन नाँव ।। आओ लौट चलें साथी अब ... कभी लोभ में पड़कर भैय्या , छोड़ न जाना गाँव । एक प्रकृति ही देती हमको , शीतल-शीतल छाँव ।। और न कोई सगा धरा पर , झूठा सभी लगाव । अब यह जीवन है सुन दरिया , जाऊँ जिधर बहाव ।। आओ लौट चलें अब साथी.... आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  *विधा     सरसी छन्द आधारित गीत*

आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव ।
वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी ....

पूर्ण हुई वह खुशियाँ सारी , जो थी मन में चाह ।
खूब कमाकर पैसा सोचा , करूँ सुता का ब्याह ।।
आज उन्हीं बच्चों ने बोला , क्यों करते हो काँव ।
जिनकी खातिर ठुकरा आया, मातु-पिता की ठाँव ।
आओ लौट चलें अब साथी .....

स्वार्थ रहित जीवन जीने से , मरना उच्च उपाय ।
सुख की चाह लिए भागा मैं, और बढ़ाऊँ आय ।।
यह जीवन मिथ्या कर डाला , पाया संग तनाव ।
देख मनुज से पशु बन बैठा , डालो गले गराँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी....

भूल गया मिट्टी के घर को , किया नहीं परवाह ।
मिला प्रेम था मातु-पिता से , लगा न पाया थाह ।।
अच्छा रहना अच्छा खाना , मन में था ठहराव ।
सारा जीवन लगा दिया मैं , इन बच्चों पर दाँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी .....

झुकी कमर कहती है हमसे , मिटी हाथ की रेख ।
गर्दन भी ये अब न न  करती ,लोग रहे सब देख ।।
वो सब हँसते हम पछताते, इतने हैं बदलाव ।
मूर्ख बना हूँ छोड़ गाँव को , बदली जीवन नाँव ।।
आओ लौट चलें साथी अब ...

कभी लोभ में पड़कर भैय्या , छोड़ न जाना गाँव ।
एक प्रकृति ही देती हमको , शीतल-शीतल छाँव ।।
और न कोई सगा धरा पर , झूठा सभी लगाव ।
अब यह जीवन है सुन दरिया , जाऊँ जिधर बहाव ।।
आओ लौट चलें अब साथी....

आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव ।
वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

*विधा     सरसी छन्द आधारित गीत* आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी ...

15 Love

White ग़ज़ल मुहब्बत हो गई तो क्या बुरा है  मुहब्बत ही ज़मानें में ख़ुदा है  कभी  मिलकर नहीं होना जुदा है  मेरे मासूम दिल की यह दुआ है तुम्हारे प्यार में पीछे पड़ा है  करो अब माफ़ भी जिद पर अड़ा है  ज़माना इस तरह दुश्मन हुआ यह सभी को लग रही मेरी ख़ता है  जहाँ की आदतें बदली नहीं हैं  मेरा दिल इसलिए पीछे मुडा है  तुम्हीं बढ़कर हमारा हाथ थामों  ज़माना तो छुडाने पे तुला है  निभायेगी वही क़समें वफ़ा की  वही दिल की हमारे अब दवा है  न माँगूं प्यार की मैं भीख उनसे  हाँ मेरे साथ भी मेरा खुदा है  प्रखर की ज़िन्दगी का फैसला भी उन्हीं की मर्ज़ी पर आकर रुका है  महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#शायरी  White ग़ज़ल

मुहब्बत हो गई तो क्या बुरा है 
मुहब्बत ही ज़मानें में ख़ुदा है 

कभी  मिलकर नहीं होना जुदा है 
मेरे मासूम दिल की यह दुआ है

तुम्हारे प्यार में पीछे पड़ा है 
करो अब माफ़ भी जिद पर अड़ा है 

ज़माना इस तरह दुश्मन हुआ यह
सभी को लग रही मेरी ख़ता है 

जहाँ की आदतें बदली नहीं हैं
 मेरा दिल इसलिए पीछे मुडा है 

तुम्हीं बढ़कर हमारा हाथ थामों 
ज़माना तो छुडाने पे तुला है 

निभायेगी वही क़समें वफ़ा की 
वही दिल की हमारे अब दवा है 

न माँगूं प्यार की मैं भीख उनसे 
हाँ मेरे साथ भी मेरा खुदा है 

प्रखर की ज़िन्दगी का फैसला भी
उन्हीं की मर्ज़ी पर आकर रुका है 

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल मुहब्बत हो गई तो क्या बुरा है  मुहब्बत ही ज़मानें में ख़ुदा है 

13 Love

जब पता है कि जब भी तू मुंह खोलता है, गटर की बहता है तो फिर क्यों सबकी ज़िन्दगी नाला करने पर तुला है..! ©Himanshu Prajapati

#विचार #hpstrange #36gyan #Funny  जब पता है कि 
जब भी तू मुंह खोलता है,
गटर की बहता है 
तो फिर क्यों सबकी ज़िन्दगी 
नाला करने पर तुला है..!

©Himanshu Prajapati

#Funny जब पता है कि जब भी तू मुंह खोलता है, गटर की बहता है तो फिर क्यों सबकी ज़िन्दगी नाला करने पर तुला है..! #hpstrange #36gyan

17 Love

*विधा     सरसी छन्द आधारित गीत* आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी .... पूर्ण हुई वह खुशियाँ सारी , जो थी मन में चाह । खूब कमाकर पैसा सोचा , करूँ सुता का ब्याह ।। आज उन्हीं बच्चों ने बोला , क्यों करते हो काँव । जिनकी खातिर ठुकरा आया, मातु-पिता की ठाँव । आओ लौट चलें अब साथी ..... स्वार्थ रहित जीवन जीने से , मरना उच्च उपाय । सुख की चाह लिए भागा मैं, और बढ़ाऊँ आय ।। यह जीवन मिथ्या कर डाला , पाया संग तनाव । देख मनुज से पशु बन बैठा , डालो गले गराँव ।। आओ लौट चलें अब साथी.... भूल गया मिट्टी के घर को , किया नहीं परवाह । मिला प्रेम था मातु-पिता से , लगा न पाया थाह ।। अच्छा रहना अच्छा खाना , मन में था ठहराव । सारा जीवन लगा दिया मैं , इन बच्चों पर दाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी ..... झुकी कमर कहती है हमसे , मिटी हाथ की रेख । गर्दन भी ये अब न न  करती ,लोग रहे सब देख ।। वो सब हँसते हम पछताते, इतने हैं बदलाव । मूर्ख बना हूँ छोड़ गाँव को , बदली जीवन नाँव ।। आओ लौट चलें साथी अब ... कभी लोभ में पड़कर भैय्या , छोड़ न जाना गाँव । एक प्रकृति ही देती हमको , शीतल-शीतल छाँव ।। और न कोई सगा धरा पर , झूठा सभी लगाव । अब यह जीवन है सुन दरिया , जाऊँ जिधर बहाव ।। आओ लौट चलें अब साथी.... आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  *विधा     सरसी छन्द आधारित गीत*

आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव ।
वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी ....

पूर्ण हुई वह खुशियाँ सारी , जो थी मन में चाह ।
खूब कमाकर पैसा सोचा , करूँ सुता का ब्याह ।।
आज उन्हीं बच्चों ने बोला , क्यों करते हो काँव ।
जिनकी खातिर ठुकरा आया, मातु-पिता की ठाँव ।
आओ लौट चलें अब साथी .....

स्वार्थ रहित जीवन जीने से , मरना उच्च उपाय ।
सुख की चाह लिए भागा मैं, और बढ़ाऊँ आय ।।
यह जीवन मिथ्या कर डाला , पाया संग तनाव ।
देख मनुज से पशु बन बैठा , डालो गले गराँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी....

भूल गया मिट्टी के घर को , किया नहीं परवाह ।
मिला प्रेम था मातु-पिता से , लगा न पाया थाह ।।
अच्छा रहना अच्छा खाना , मन में था ठहराव ।
सारा जीवन लगा दिया मैं , इन बच्चों पर दाँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी .....

झुकी कमर कहती है हमसे , मिटी हाथ की रेख ।
गर्दन भी ये अब न न  करती ,लोग रहे सब देख ।।
वो सब हँसते हम पछताते, इतने हैं बदलाव ।
मूर्ख बना हूँ छोड़ गाँव को , बदली जीवन नाँव ।।
आओ लौट चलें साथी अब ...

कभी लोभ में पड़कर भैय्या , छोड़ न जाना गाँव ।
एक प्रकृति ही देती हमको , शीतल-शीतल छाँव ।।
और न कोई सगा धरा पर , झूठा सभी लगाव ।
अब यह जीवन है सुन दरिया , जाऊँ जिधर बहाव ।।
आओ लौट चलें अब साथी....

आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव ।
वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

*विधा     सरसी छन्द आधारित गीत* आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी ...

15 Love

White ग़ज़ल मुहब्बत हो गई तो क्या बुरा है  मुहब्बत ही ज़मानें में ख़ुदा है  कभी  मिलकर नहीं होना जुदा है  मेरे मासूम दिल की यह दुआ है तुम्हारे प्यार में पीछे पड़ा है  करो अब माफ़ भी जिद पर अड़ा है  ज़माना इस तरह दुश्मन हुआ यह सभी को लग रही मेरी ख़ता है  जहाँ की आदतें बदली नहीं हैं  मेरा दिल इसलिए पीछे मुडा है  तुम्हीं बढ़कर हमारा हाथ थामों  ज़माना तो छुडाने पे तुला है  निभायेगी वही क़समें वफ़ा की  वही दिल की हमारे अब दवा है  न माँगूं प्यार की मैं भीख उनसे  हाँ मेरे साथ भी मेरा खुदा है  प्रखर की ज़िन्दगी का फैसला भी उन्हीं की मर्ज़ी पर आकर रुका है  महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#शायरी  White ग़ज़ल

मुहब्बत हो गई तो क्या बुरा है 
मुहब्बत ही ज़मानें में ख़ुदा है 

कभी  मिलकर नहीं होना जुदा है 
मेरे मासूम दिल की यह दुआ है

तुम्हारे प्यार में पीछे पड़ा है 
करो अब माफ़ भी जिद पर अड़ा है 

ज़माना इस तरह दुश्मन हुआ यह
सभी को लग रही मेरी ख़ता है 

जहाँ की आदतें बदली नहीं हैं
 मेरा दिल इसलिए पीछे मुडा है 

तुम्हीं बढ़कर हमारा हाथ थामों 
ज़माना तो छुडाने पे तुला है 

निभायेगी वही क़समें वफ़ा की 
वही दिल की हमारे अब दवा है 

न माँगूं प्यार की मैं भीख उनसे 
हाँ मेरे साथ भी मेरा खुदा है 

प्रखर की ज़िन्दगी का फैसला भी
उन्हीं की मर्ज़ी पर आकर रुका है 

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल मुहब्बत हो गई तो क्या बुरा है  मुहब्बत ही ज़मानें में ख़ुदा है 

13 Love

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