White पल्लव की डायरी
है अकेला तू,गति कर्मो की है
चेतना की सुध भी नही लेता तू
मोहपाश में ज्यो ज्यो फ़ँसा तू
बन्धनों में ऐसा जकड़ा तू
राग द्वेष का व्यापार चलाता तू
किसी से प्रीती किसी से दुश्मनी कर
भावो की सतत सरिता में बहकर
नित पापो से कलुषित आत्मा करता क्यू
भोग ही जीवन नही है
योग संजोग निज तत्वों में ला
भटकावों के सजे है मेले दुनियाँ में
तू इनमे फँसने, बार बार जन्म ना पा
क्लोज करो यहाँ कर्मो का एकाउंट
बार बार के जन्म मरण से आत्मा को मुक्ति करो
प्रवीण जैन पल्लव
©Praveen Jain "पल्लव"
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