रोग
ऐसा रोग लगा मुझे की, अब नहीं दिखता कोई अपना,
जकड़ा मुझको इसने ऐसे की, रहा न कोई अपना।
छाया अब घनघोर अंधेरा, कैसी दुविधा है आई,
चारो ओर उदासी है लाई, इंतजार जीवन भर पाया।
चेहरे पर खुशी नहीं अब, ऐसा साल आया अब,
पैसे रहा न अपने रहे,रहा न कोई अपना।
शुरुआत में लगा मुझे भी, सलामत घर को लौट जाऊंगा,
सब कुछ ठीक फिर हो जायेगा,पहले जैसा बन जायेगा।
लेकिन फिर अचानक से, इस बीमारी ने अपना रंग दिखाई,
दिखाया मुझको फिर आइना, मुझसे मेरी पहचान कराई।
अब पूछते है एक दूसरे से, कब होगा सब पहले जैसा,
कब तक रहेगा सब ऐसा,
हर सुबह करते है अब सब, सवाल नए एक दूसरे से।
कही ऐसा न हो जाए, उड़ जाए पंछी अकेला,
रह जाए बस खाली पिंजरा,
समझ आया जब रोग ये लगा, रहा न कोई अपना।
Alfazii 🖊️💙
©Heer
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here