White (भूल गया)
उसके ख्वाब आ ही जाते है ,,परेशान नींदों को करने ,,मैं चादर की सिलवटों से उसके निशान मिटाना ,,,भूल गया ।।
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ये बलाएं उदासियों की जब से छाई है मुझपर ,,मैं खुद ही हस दिया खुदपर,,, बस मुस्कुराना ,,,भूल गया ।।
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अधूरी खुआइशों के काफिलें,,चाहते थे कूच कब से ,,,मैं घुटन अपने कमरे की ,,नाराज दीवारों को बताना ,,भूल गया ।।
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अब ये बेघरी ना जाने किस ओर ले जाए मुझे ,,रोज इक नई शाम की तलाश में ,,,मैं अपना ठिकाना ,,भूल गया ।।
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तनहा सी राहों में एक अजनबी सी शक्ल ने मुझसे पूछा ,,दोस्त तुम कुछ खाओगे क्या ,,खुद की हालत उसकी आंखो में देखकर जाना ,,एक अरसे से मैं ,,दाढ़ी बनाना ,,भूल गया ।।
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बेअसर ही रही ,,हर इक दवा मुझपर ,,मैखाने के हकीमों ने दर्द मेरा देखा मगर ,,,मैं जख्म उन्हे रूह के दिखाना ,,भूल गया ।।
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वो चांद तो किसी खास रात में ,, लखनऊ की किसी हसीन छत पर निकलता होगा ,,उसके किस्से सुने और सुनाए बहुत मगर ,,अर्श के तारों को उसके नए घर का पता बताना ,,भूल गया ।।
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बेचैनी इतनी थी की साल दर साल खंडहर छाने बहुत ,,अपने चेहरे पर कालिख तो मल ली मगर ,,दीवारों पर उकेरे गई उसकी तस्वीर मिटाना ,,भूल गया ।।
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कमाल की मोसिकी है अब शराब से मेरी ,,बाद उसके हर शाम तैयार होकर मैखाने तो पहुंचा मगर ,,,हर रोज सुबह सुबह नहाना ,,भूल गया ।।
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सामने वाले ने जब कहा ,,वाह क्या कहने उसकी खुदगर्जी के राणा ,,तब एहसास हुआ ना जाने ये शराब कितने राज़ खुलवाएगी मुझसे ,,और न जाने क्या कुछ रह गया है बाकी ,,जाने क्या क्या मैं बताना भूल गया ।।
©#शून्य राणा
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