" काल हूं मैं "
बदलते दौर का किस्सा सुनता हूं ।
अब मैं दसरथ का राम नहीं,
हर जगह मर्यादा ना मैं दिखाऊंगा।
जरूरत पड़ने पर
वासदेव का कृष्ण बन जाऊंगा।
कृष्णा बेबस नही होगी अब,
मैं सीधा दुर्युधन अनुज का गला दबाऊंगा।।
अगर महाभारत दोहराया गया।
मैं स्वयं रणभूमि में
सुदर्शन चक्र चलाऊंगा।।
गांडीवदारी अर्जुन को पहले की तरह
गीता का उपदेश सुनाऊंगा।।
वो समझा नहीं जो अगर
द्रोण के चक्रव्यू भेदन हेतु
अभिमन्यु मैं बन जाऊंगा।।
इस बार घेरना होगा असंभव अभिमन्यु का,
कर्ण से महारथियों का बल मैं स्वयं ही घटाऊंगा।।
संधि के विषय पर तिलमिला उठा था अभिमानी दुर्युधन,
कहता था सूई के नोक जितनी भी भूमि न दे पाऊंगा।।
काल हूं मैं ,
काल हूं मैं ,
अंधा अगर राजा हो जाए
सभापतियों को ध्यान देना होगा,
धर्म क्या है ज्ञात रहे,
अन्यथा
काल हूं मैं,
काल की परिभाषा ही बदल जाऊंगा।।
©Hitender Daksh
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