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White मेरे देश में हैं भेष कई सभी के मन में हैं द्वेष कई, मेहनत करता यहां किसान है, अपनों से बिछड़ता हर इंसान है, स्मार्ट होने का यह युग है, लोग कहते हैं यही तो कलियुग है, धर्म का यहां शोर है, भर्म का न कोई तोड़ है, खैर समझाने के हम हकदार नहीं, अपनों से यहां कइयों को प्यार नहीं, खुले बाजार में बिकती यहां जवानी भी है, देश के लिए कुर्बान होती कहानी भी है समेटने को यहां यादें भी है, भूल जाने वाले वादे भी है। फिर भी देश यह हसीन है। ©Ajay Garg

#किसान_का_सम्मान_करो #मेरादेश #भारत🇮🇳 #quit_india_movement #विचार #भारत  White मेरे देश में हैं भेष कई
सभी के मन में हैं द्वेष कई,
मेहनत करता यहां किसान है,
अपनों से बिछड़ता हर इंसान है,
स्मार्ट होने का यह युग है,
लोग कहते हैं यही तो कलियुग है,
धर्म का यहां शोर है,
भर्म का न कोई तोड़ है,
खैर समझाने के हम हकदार नहीं,
अपनों से यहां कइयों को प्यार नहीं,
खुले बाजार में बिकती यहां जवानी भी है,
देश के लिए कुर्बान होती कहानी भी है
समेटने को यहां यादें भी है,
भूल जाने वाले वादे भी है।
फिर भी देश यह हसीन है।

©Ajay Garg
#Videos

किसानी करावल करी ले Singer writer Chandradeep lal Yadav

81 View

#Videos

किसान

81 View

White देकर अन्न समाज को, भूखा रहे किसान। विडम्बना ये देश की, देख सभी हैरान।। पेट भरे जिस अन्न से, जग के सब इंसान। देकर सबको दान फिर, रहता दुखी किसान।। उपजाकर जो अन्न को, भरे बैंक का कर्ज।सबका भरना पेट ही, समझे अपना फर्ज।। सूखे का या बाढ़ का , नहिं कोई उपचार। दोनो ही से त्रस्त है, रहे कृषक लाचार।। -निलम ©Nilam Agarwalla

#कविता #किसान  White 
देकर अन्न समाज को, भूखा रहे किसान।
 विडम्बना ये देश की, देख सभी हैरान।। 

पेट भरे जिस अन्न से, जग के सब इंसान।
देकर सबको दान फिर, रहता दुखी  किसान।।

उपजाकर जो अन्न को, भरे बैंक का कर्ज।सबका भरना पेट ही, समझे अपना फर्ज।। 

सूखे का या बाढ़ का , नहिं कोई उपचार।
दोनो ही से त्रस्त है, रहे कृषक लाचार।। 

 -निलम

©Nilam Agarwalla
#विचार  White खेत खलिहान आस लगाए रहते हैं बस! बादलों के झुरमुट की इसलिए तो किसान सूखी पलकों को लेकर बारिश के लिए पलक पांवड़े बिछाए रहते हैं ताकि मेहनत रंग लाए।

©Satish Kumar Meena

किसान

144 View

किसान कोई तो बचाए इनको समझे कोई दर्द इनका भी, इनके हक के लिए भी तो कोई उठाए आवाज अपनी। लड़ते लड़ते हार भी जाते और फिर त्याग देते ये जीवन, फिर भी किसी के आगे फैलाते न हाथ अपने। सबका पेट ये है भरते खुद मगर भूखे ही सोते, फिर भी मुख से आह न भरते। ©Heer

#किसान #farmersprotest  किसान 

कोई तो बचाए इनको समझे कोई दर्द इनका भी,
इनके हक के लिए भी तो कोई उठाए आवाज अपनी। 

लड़ते लड़ते हार भी जाते और फिर त्याग देते ये जीवन,
फिर भी किसी के आगे फैलाते न हाथ अपने। 

सबका पेट ये है भरते खुद मगर भूखे ही सोते,
फिर भी मुख से आह न भरते।

©Heer

White मेरे देश में हैं भेष कई सभी के मन में हैं द्वेष कई, मेहनत करता यहां किसान है, अपनों से बिछड़ता हर इंसान है, स्मार्ट होने का यह युग है, लोग कहते हैं यही तो कलियुग है, धर्म का यहां शोर है, भर्म का न कोई तोड़ है, खैर समझाने के हम हकदार नहीं, अपनों से यहां कइयों को प्यार नहीं, खुले बाजार में बिकती यहां जवानी भी है, देश के लिए कुर्बान होती कहानी भी है समेटने को यहां यादें भी है, भूल जाने वाले वादे भी है। फिर भी देश यह हसीन है। ©Ajay Garg

#किसान_का_सम्मान_करो #मेरादेश #भारत🇮🇳 #quit_india_movement #विचार #भारत  White मेरे देश में हैं भेष कई
सभी के मन में हैं द्वेष कई,
मेहनत करता यहां किसान है,
अपनों से बिछड़ता हर इंसान है,
स्मार्ट होने का यह युग है,
लोग कहते हैं यही तो कलियुग है,
धर्म का यहां शोर है,
भर्म का न कोई तोड़ है,
खैर समझाने के हम हकदार नहीं,
अपनों से यहां कइयों को प्यार नहीं,
खुले बाजार में बिकती यहां जवानी भी है,
देश के लिए कुर्बान होती कहानी भी है
समेटने को यहां यादें भी है,
भूल जाने वाले वादे भी है।
फिर भी देश यह हसीन है।

©Ajay Garg
#Videos

किसानी करावल करी ले Singer writer Chandradeep lal Yadav

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#Videos

किसान

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White देकर अन्न समाज को, भूखा रहे किसान। विडम्बना ये देश की, देख सभी हैरान।। पेट भरे जिस अन्न से, जग के सब इंसान। देकर सबको दान फिर, रहता दुखी किसान।। उपजाकर जो अन्न को, भरे बैंक का कर्ज।सबका भरना पेट ही, समझे अपना फर्ज।। सूखे का या बाढ़ का , नहिं कोई उपचार। दोनो ही से त्रस्त है, रहे कृषक लाचार।। -निलम ©Nilam Agarwalla

#कविता #किसान  White 
देकर अन्न समाज को, भूखा रहे किसान।
 विडम्बना ये देश की, देख सभी हैरान।। 

पेट भरे जिस अन्न से, जग के सब इंसान।
देकर सबको दान फिर, रहता दुखी  किसान।।

उपजाकर जो अन्न को, भरे बैंक का कर्ज।सबका भरना पेट ही, समझे अपना फर्ज।। 

सूखे का या बाढ़ का , नहिं कोई उपचार।
दोनो ही से त्रस्त है, रहे कृषक लाचार।। 

 -निलम

©Nilam Agarwalla
#विचार  White खेत खलिहान आस लगाए रहते हैं बस! बादलों के झुरमुट की इसलिए तो किसान सूखी पलकों को लेकर बारिश के लिए पलक पांवड़े बिछाए रहते हैं ताकि मेहनत रंग लाए।

©Satish Kumar Meena

किसान

144 View

किसान कोई तो बचाए इनको समझे कोई दर्द इनका भी, इनके हक के लिए भी तो कोई उठाए आवाज अपनी। लड़ते लड़ते हार भी जाते और फिर त्याग देते ये जीवन, फिर भी किसी के आगे फैलाते न हाथ अपने। सबका पेट ये है भरते खुद मगर भूखे ही सोते, फिर भी मुख से आह न भरते। ©Heer

#किसान #farmersprotest  किसान 

कोई तो बचाए इनको समझे कोई दर्द इनका भी,
इनके हक के लिए भी तो कोई उठाए आवाज अपनी। 

लड़ते लड़ते हार भी जाते और फिर त्याग देते ये जीवन,
फिर भी किसी के आगे फैलाते न हाथ अपने। 

सबका पेट ये है भरते खुद मगर भूखे ही सोते,
फिर भी मुख से आह न भरते।

©Heer
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