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ग़ज़ल :- चलो राह के आज काँटें चुरा लें  उन्हें दिल की महफ़िल में फिर से बिठा लें कभी चाँद के ही बहाने से छत पर जो आओ नज़र प्यास हम भी मिटा लें न ज़न्नत से हैं कम कदम ये तुम्हारे अगर हो इजाज़त तो दुनिया बसा लें बहुत हो गई है चूँ चाँ ज़िन्दगी में  यही कह रहा दिल कि पर्दा गिरा लें  बिछड़ जायेंगे दो घड़ी बाद फिर से  कोई कह दे उनसे गले से लगा लें  बड़ी बद नज़र हैं ज़माने की नज़रें  बचाकर नज़र आज घूँघट उठा लें  सफ़र की थकन से मुसाफ़िर हैं बेसुध  चलो उनको थोडा सा पानी पिला लें  लगी आग जो तन बदन में हमारे  उसे प्रीत से ही चलो हम बुझा लें  मिला जो अभी तक हमें चाहतों में  उसे धड़कनों में कहीं तो छुपा लें  बहुत बढ़ रही है तपन सूर्य की अब  जमीं पे कहीं एक पौधा लगा लें  प्रखर तो यही रात दिन सोचता है । नहीं अब किसी की कभी बददुआ लें  महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#शायरी  ग़ज़ल :-
चलो राह के आज काँटें चुरा लें 
उन्हें दिल की महफ़िल में फिर से बिठा लें
कभी चाँद के ही बहाने से छत पर
जो आओ नज़र प्यास हम भी मिटा लें
न ज़न्नत से हैं कम कदम ये तुम्हारे
अगर हो इजाज़त तो दुनिया बसा लें
बहुत हो गई है चूँ चाँ ज़िन्दगी में 
यही कह रहा दिल कि पर्दा गिरा लें 
बिछड़ जायेंगे दो घड़ी बाद फिर से 
कोई कह दे उनसे गले से लगा लें 
बड़ी बद नज़र हैं ज़माने की नज़रें 
बचाकर नज़र आज घूँघट उठा लें 
सफ़र की थकन से मुसाफ़िर हैं बेसुध 
चलो उनको थोडा सा पानी पिला लें 
लगी आग जो तन बदन में हमारे 
उसे प्रीत से ही चलो हम बुझा लें 
मिला जो अभी तक हमें चाहतों में 
उसे धड़कनों में कहीं तो छुपा लें 
बहुत बढ़ रही है तपन सूर्य की अब 
जमीं पे कहीं एक पौधा लगा लें 
प्रखर तो यही रात दिन सोचता है ।
नहीं अब किसी की कभी बददुआ लें 
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- चलो राह के आज काँटें चुरा लें  उन्हें दिल की महफ़िल में फिर से बिठा लें

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ग़ज़ल :- चलो राह के आज काँटें चुरा लें  उन्हें दिल की महफ़िल में फिर से बिठा लें कभी चाँद के ही बहाने से छत पर जो आओ नज़र प्यास हम भी मिटा लें न ज़न्नत से हैं कम कदम ये तुम्हारे अगर हो इजाज़त तो दुनिया बसा लें बहुत हो गई है चूँ चाँ ज़िन्दगी में  यही कह रहा दिल कि पर्दा गिरा लें  बिछड़ जायेंगे दो घड़ी बाद फिर से  कोई कह दे उनसे गले से लगा लें  बड़ी बद नज़र हैं ज़माने की नज़रें  बचाकर नज़र आज घूँघट उठा लें  सफ़र की थकन से मुसाफ़िर हैं बेसुध  चलो उनको थोडा सा पानी पिला लें  लगी आग जो तन बदन में हमारे  उसे प्रीत से ही चलो हम बुझा लें  मिला जो अभी तक हमें चाहतों में  उसे धड़कनों में कहीं तो छुपा लें  बहुत बढ़ रही है तपन सूर्य की अब  जमीं पे कहीं एक पौधा लगा लें  प्रखर तो यही रात दिन सोचता है । नहीं अब किसी की कभी बददुआ लें  महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#शायरी  ग़ज़ल :-
चलो राह के आज काँटें चुरा लें 
उन्हें दिल की महफ़िल में फिर से बिठा लें
कभी चाँद के ही बहाने से छत पर
जो आओ नज़र प्यास हम भी मिटा लें
न ज़न्नत से हैं कम कदम ये तुम्हारे
अगर हो इजाज़त तो दुनिया बसा लें
बहुत हो गई है चूँ चाँ ज़िन्दगी में 
यही कह रहा दिल कि पर्दा गिरा लें 
बिछड़ जायेंगे दो घड़ी बाद फिर से 
कोई कह दे उनसे गले से लगा लें 
बड़ी बद नज़र हैं ज़माने की नज़रें 
बचाकर नज़र आज घूँघट उठा लें 
सफ़र की थकन से मुसाफ़िर हैं बेसुध 
चलो उनको थोडा सा पानी पिला लें 
लगी आग जो तन बदन में हमारे 
उसे प्रीत से ही चलो हम बुझा लें 
मिला जो अभी तक हमें चाहतों में 
उसे धड़कनों में कहीं तो छुपा लें 
बहुत बढ़ रही है तपन सूर्य की अब 
जमीं पे कहीं एक पौधा लगा लें 
प्रखर तो यही रात दिन सोचता है ।
नहीं अब किसी की कभी बददुआ लें 
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- चलो राह के आज काँटें चुरा लें  उन्हें दिल की महफ़िल में फिर से बिठा लें

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