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White ट्यूलिप का संदेश बर्फ की चादर ओढ़े हुए,धरती के आँचल में छिपे, ट्यूलिप के फूल ने ये कहा,संघर्ष में भी खिलना है सदा। हर रंग में छिपी है बात,प्रकृति की प्यारी सौगात, जैसे ट्यूलिप मुस्कराए,वैसे ही जीवन में रंग भर जाएं। नाज़ुक पंखुड़ियों में छिपा है,एक हौसला, एक नया सवेरा, ट्यूलिप का हर फूल कहता है,अंधेरों में भी उजाला होता है। तो सीखो इन फूलों से जीना,हर मुश्किल में खुद को पाना, क्योंकि ट्यूलिप के गुलदस्ते में,छिपा है जिंदगी का फ़साना। ©Lucky Latest

#sandeeplguru #Tulips #viral  White ट्यूलिप का संदेश


बर्फ की चादर ओढ़े हुए,धरती के आँचल में छिपे,
ट्यूलिप के फूल ने ये कहा,संघर्ष में भी खिलना है सदा।

 हर रंग में छिपी है बात,प्रकृति की प्यारी सौगात,
जैसे ट्यूलिप मुस्कराए,वैसे ही जीवन में रंग भर जाएं।

नाज़ुक पंखुड़ियों में छिपा है,एक हौसला, एक नया सवेरा,
ट्यूलिप का हर फूल कहता है,अंधेरों में भी उजाला होता है।

तो सीखो इन फूलों से जीना,हर मुश्किल में खुद को पाना,
क्योंकि ट्यूलिप के गुलदस्ते में,छिपा है जिंदगी का फ़साना।

©Lucky Latest

यहाँ ट्यूलिप्स पर आधारित एक अनोखी कविता प्रस्तुत है। #sandeeplguru #viral #Nojoto #Tulips poetry in hindi deep poetry in Life h

81 Love

*विधा     सरसी छन्द आधारित गीत* आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी .... पूर्ण हुई वह खुशियाँ सारी , जो थी मन में चाह । खूब कमाकर पैसा सोचा , करूँ सुता का ब्याह ।। आज उन्हीं बच्चों ने बोला , क्यों करते हो काँव । जिनकी खातिर ठुकरा आया, मातु-पिता की ठाँव । आओ लौट चलें अब साथी ..... स्वार्थ रहित जीवन जीने से , मरना उच्च उपाय । सुख की चाह लिए भागा मैं, और बढ़ाऊँ आय ।। यह जीवन मिथ्या कर डाला , पाया संग तनाव । देख मनुज से पशु बन बैठा , डालो गले गराँव ।। आओ लौट चलें अब साथी.... भूल गया मिट्टी के घर को , किया नहीं परवाह । मिला प्रेम था मातु-पिता से , लगा न पाया थाह ।। अच्छा रहना अच्छा खाना , मन में था ठहराव । सारा जीवन लगा दिया मैं , इन बच्चों पर दाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी ..... झुकी कमर कहती है हमसे , मिटी हाथ की रेख । गर्दन भी ये अब न न  करती ,लोग रहे सब देख ।। वो सब हँसते हम पछताते, इतने हैं बदलाव । मूर्ख बना हूँ छोड़ गाँव को , बदली जीवन नाँव ।। आओ लौट चलें साथी अब ... कभी लोभ में पड़कर भैय्या , छोड़ न जाना गाँव । एक प्रकृति ही देती हमको , शीतल-शीतल छाँव ।। और न कोई सगा धरा पर , झूठा सभी लगाव । अब यह जीवन है सुन दरिया , जाऊँ जिधर बहाव ।। आओ लौट चलें अब साथी.... आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  *विधा     सरसी छन्द आधारित गीत*

आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव ।
वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी ....

पूर्ण हुई वह खुशियाँ सारी , जो थी मन में चाह ।
खूब कमाकर पैसा सोचा , करूँ सुता का ब्याह ।।
आज उन्हीं बच्चों ने बोला , क्यों करते हो काँव ।
जिनकी खातिर ठुकरा आया, मातु-पिता की ठाँव ।
आओ लौट चलें अब साथी .....

स्वार्थ रहित जीवन जीने से , मरना उच्च उपाय ।
सुख की चाह लिए भागा मैं, और बढ़ाऊँ आय ।।
यह जीवन मिथ्या कर डाला , पाया संग तनाव ।
देख मनुज से पशु बन बैठा , डालो गले गराँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी....

भूल गया मिट्टी के घर को , किया नहीं परवाह ।
मिला प्रेम था मातु-पिता से , लगा न पाया थाह ।।
अच्छा रहना अच्छा खाना , मन में था ठहराव ।
सारा जीवन लगा दिया मैं , इन बच्चों पर दाँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी .....

झुकी कमर कहती है हमसे , मिटी हाथ की रेख ।
गर्दन भी ये अब न न  करती ,लोग रहे सब देख ।।
वो सब हँसते हम पछताते, इतने हैं बदलाव ।
मूर्ख बना हूँ छोड़ गाँव को , बदली जीवन नाँव ।।
आओ लौट चलें साथी अब ...

कभी लोभ में पड़कर भैय्या , छोड़ न जाना गाँव ।
एक प्रकृति ही देती हमको , शीतल-शीतल छाँव ।।
और न कोई सगा धरा पर , झूठा सभी लगाव ।
अब यह जीवन है सुन दरिया , जाऊँ जिधर बहाव ।।
आओ लौट चलें अब साथी....

आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव ।
वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

*विधा     सरसी छन्द आधारित गीत* आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी ...

15 Love

#कविता

सच्ची घटना पर आधारित हिंदी दिवस पर कविता

54 View

#कविता

अक्षर की अविरल कविता सी गोस्वामी तुलसीदास एवं रत्नावली पर आधारित कविता अम्बिका मिश्र प्रखर @narendra bhakuni @Shubham Kumar

198 View

White ट्यूलिप का संदेश बर्फ की चादर ओढ़े हुए,धरती के आँचल में छिपे, ट्यूलिप के फूल ने ये कहा,संघर्ष में भी खिलना है सदा। हर रंग में छिपी है बात,प्रकृति की प्यारी सौगात, जैसे ट्यूलिप मुस्कराए,वैसे ही जीवन में रंग भर जाएं। नाज़ुक पंखुड़ियों में छिपा है,एक हौसला, एक नया सवेरा, ट्यूलिप का हर फूल कहता है,अंधेरों में भी उजाला होता है। तो सीखो इन फूलों से जीना,हर मुश्किल में खुद को पाना, क्योंकि ट्यूलिप के गुलदस्ते में,छिपा है जिंदगी का फ़साना। ©Lucky Latest

#sandeeplguru #Tulips #viral  White ट्यूलिप का संदेश


बर्फ की चादर ओढ़े हुए,धरती के आँचल में छिपे,
ट्यूलिप के फूल ने ये कहा,संघर्ष में भी खिलना है सदा।

 हर रंग में छिपी है बात,प्रकृति की प्यारी सौगात,
जैसे ट्यूलिप मुस्कराए,वैसे ही जीवन में रंग भर जाएं।

नाज़ुक पंखुड़ियों में छिपा है,एक हौसला, एक नया सवेरा,
ट्यूलिप का हर फूल कहता है,अंधेरों में भी उजाला होता है।

तो सीखो इन फूलों से जीना,हर मुश्किल में खुद को पाना,
क्योंकि ट्यूलिप के गुलदस्ते में,छिपा है जिंदगी का फ़साना।

©Lucky Latest

यहाँ ट्यूलिप्स पर आधारित एक अनोखी कविता प्रस्तुत है। #sandeeplguru #viral #Nojoto #Tulips poetry in hindi deep poetry in Life h

81 Love

*विधा     सरसी छन्द आधारित गीत* आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी .... पूर्ण हुई वह खुशियाँ सारी , जो थी मन में चाह । खूब कमाकर पैसा सोचा , करूँ सुता का ब्याह ।। आज उन्हीं बच्चों ने बोला , क्यों करते हो काँव । जिनकी खातिर ठुकरा आया, मातु-पिता की ठाँव । आओ लौट चलें अब साथी ..... स्वार्थ रहित जीवन जीने से , मरना उच्च उपाय । सुख की चाह लिए भागा मैं, और बढ़ाऊँ आय ।। यह जीवन मिथ्या कर डाला , पाया संग तनाव । देख मनुज से पशु बन बैठा , डालो गले गराँव ।। आओ लौट चलें अब साथी.... भूल गया मिट्टी के घर को , किया नहीं परवाह । मिला प्रेम था मातु-पिता से , लगा न पाया थाह ।। अच्छा रहना अच्छा खाना , मन में था ठहराव । सारा जीवन लगा दिया मैं , इन बच्चों पर दाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी ..... झुकी कमर कहती है हमसे , मिटी हाथ की रेख । गर्दन भी ये अब न न  करती ,लोग रहे सब देख ।। वो सब हँसते हम पछताते, इतने हैं बदलाव । मूर्ख बना हूँ छोड़ गाँव को , बदली जीवन नाँव ।। आओ लौट चलें साथी अब ... कभी लोभ में पड़कर भैय्या , छोड़ न जाना गाँव । एक प्रकृति ही देती हमको , शीतल-शीतल छाँव ।। और न कोई सगा धरा पर , झूठा सभी लगाव । अब यह जीवन है सुन दरिया , जाऊँ जिधर बहाव ।। आओ लौट चलें अब साथी.... आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  *विधा     सरसी छन्द आधारित गीत*

आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव ।
वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी ....

पूर्ण हुई वह खुशियाँ सारी , जो थी मन में चाह ।
खूब कमाकर पैसा सोचा , करूँ सुता का ब्याह ।।
आज उन्हीं बच्चों ने बोला , क्यों करते हो काँव ।
जिनकी खातिर ठुकरा आया, मातु-पिता की ठाँव ।
आओ लौट चलें अब साथी .....

स्वार्थ रहित जीवन जीने से , मरना उच्च उपाय ।
सुख की चाह लिए भागा मैं, और बढ़ाऊँ आय ।।
यह जीवन मिथ्या कर डाला , पाया संग तनाव ।
देख मनुज से पशु बन बैठा , डालो गले गराँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी....

भूल गया मिट्टी के घर को , किया नहीं परवाह ।
मिला प्रेम था मातु-पिता से , लगा न पाया थाह ।।
अच्छा रहना अच्छा खाना , मन में था ठहराव ।
सारा जीवन लगा दिया मैं , इन बच्चों पर दाँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी .....

झुकी कमर कहती है हमसे , मिटी हाथ की रेख ।
गर्दन भी ये अब न न  करती ,लोग रहे सब देख ।।
वो सब हँसते हम पछताते, इतने हैं बदलाव ।
मूर्ख बना हूँ छोड़ गाँव को , बदली जीवन नाँव ।।
आओ लौट चलें साथी अब ...

कभी लोभ में पड़कर भैय्या , छोड़ न जाना गाँव ।
एक प्रकृति ही देती हमको , शीतल-शीतल छाँव ।।
और न कोई सगा धरा पर , झूठा सभी लगाव ।
अब यह जीवन है सुन दरिया , जाऊँ जिधर बहाव ।।
आओ लौट चलें अब साथी....

आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव ।
वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

*विधा     सरसी छन्द आधारित गीत* आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी ...

15 Love

#कविता

सच्ची घटना पर आधारित हिंदी दिवस पर कविता

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#कविता

अक्षर की अविरल कविता सी गोस्वामी तुलसीदास एवं रत्नावली पर आधारित कविता अम्बिका मिश्र प्रखर @narendra bhakuni @Shubham Kumar

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