पिता:एक पुरुसार्थ चरित्र
इतनी सदिया बित गयी,कैसे खुद को समझता ह
मनमौजी ह ना मस्त कलंदर, पार लगता जाता ह
हजारों दर्द छुपा सीने में,चहरे से मुस्कुरता ह
हिम्मत कहा से लाता ह,हिम्मत कहा से लाता ह
बेढंग सा , बेरंग सा , उन्मादी हु मैं
नटखट , जिद् दी , बेहिसाबी हु मैं
अपूर्ण से ख्वाब मेरे, वो पूर्ण बनाता जाता ह
कर्तव्य जीवनपथ पर तहज़ीब सिखाता जाता ह
हिम्मत कहा से लाता ह,हिम्मत कहा से लाता
गर्द गिर्दाब गर्दिश से गीर बनाता जाता ह
चितवन मोह की चदर क्रोध से जलाता ह
थका हुआ वो काया से ,साथ निभाता जाता ह
अपने सारे सपनो को मुझसे बदलता जाता ह
हिम्मत कहा से लाता ह,हिम्मत कहा से लाता ह
मैं नमन करूँ उस शक्ति को,
और करू नमन कलेवर को
हाथ पकड़ चलना सिखाता
जो अथक ,अचूक बनाता ह
हिम्मत कहा से लाता ह,हिम्मत कहा से लाता ह
#योगेश_कुमार✍️
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