मरुभूमि का पुष्प-
शब्द की परिभाषा से परे,
कुछ भाव उपजते हैं,
ठीक उसी तरह जैसे अनायास ही मरूभूमि पर बारिश
की बूंदों से उपजीत पुष्प ।
निर्जन पड़े भूमि पर यूं ही खिल उठता है,
सौंदर्य को परिभाषित करते हुए ।
पर यह उन बागियों के फूलों से कुछ अलग है ,
संसार इसे पुष्प नहीं मानती ।
पर इस में इन का दोष नहीं है
ना ही पुष्प की और ना ही उस निर्मल वर्षा के बूंदों की ,
जिसने एक मरूभूमि पर जीवन का संचार किया।
दोनों तो बस अभिप्राय है,
स्वार्थ रहित साथ का।
ठीक उसी तरह तुम वह शीतल जीवनदायी जल हो,
और मैं मरुभूमि का पुष्प ।
बेशक कुछ अलग है पर गलत नहीं।
भला जीवन देना कहां ही गलत होता है ।
मैं मुस्कुराता रहूंगा तुम्हारे स्पर्श में,
और तुम अविरल बहते जाना।
रितेश कुमार सिंह
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here