आज से पहले बस सुन रखें थे
जेठ की दोपहरों के लंबे होने के तमाम किस्से
वाक़ई बिना काम के उम्मीद के सिरहाने पड़े रह कर
इन्हें काटना कितना भारी होता हैं...
वैसे ये वही दोपहरें है जिसमें किसान पीपल के नीचे अपनी खाट डाले उस पर पड़े-पड़े अपने अच्छे दिनों के लिये 33 करोड़ देवी देवताओं से प्रार्थना करता है की इस बार बारिश अच्छी करना, जिससे उसका कुछ कर्ज कम हो जायेगा...
जिस कर्ज को वो कम करने के सपनें देखता हैं, वहीं इस वक्त सरकारें उन्हें कर्ज और लेने की बातें करके उनके तपते मन पर गर्म हवा का थपेड़ा मार रही हैं ...
इसी जिस्म सुखा देने वाली गर्मी में अपनी बेहतरीन जिंदगी के लिए गए शहरों से खाली हाथ, चेहरे पर नाउम्मीदी लिए पैदल अपने घर की राह पर निकले मज़दूर रास्ते में बिना उम्मीद के पानी से दम तोड़ रहे हैं ...
मैं भी ना, ये सब क्या सोचने लगी ...
मैं तो घर में हूँ। मुझे इस बाहर की गर्मी से क्या लेना देना है ...👏🏻
~ Neha Dubey
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here