शाम- ए -अवध में दिल इज़्तिराब से बहकता है जैसे तू इर्द - गिर्द मेरी साँसों में महकता है तू समाया है मुझमें जैसे रग-रग में बहता ख़ून है मेरी उलझी सी ज़ि.
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