मैं ऐसे ख़्वाब बूनु जो उम्र भर साथ चले 
बेवज़ह क्यों
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मैं ऐसे ख़्वाब बूनु जो उम्र भर साथ चले बेवज़ह क्यों दबा जाए तेरी यादों के बोझ तले मेरी ठोकरों से तो पत्थर भी लाल हो जाते है तो क्या बिसात रखते है तेरी यादों के ज़लज़ले तेरे सीने पर सर रख कर सोये रात दिन तूने ऐसे छले ऐसे तो कोई दुश्मन भी ना छले अगर चार पहर बाद भी भूला लौटे तो भूल कहता है ये जमाना तुम तो सदियों बाद आए अब मैं कैसे लगा लू गले हाँ कभी-कभी परेशां करता तेरे चेहरे का काला तिल खैर तुम जैसे हुस्न वालो से तो हम सांवले भले --वीर

 मैं ऐसे ख़्वाब बूनु जो उम्र भर साथ चले 
बेवज़ह क्यों दबा जाए तेरी यादों के बोझ तले 

मेरी ठोकरों से तो पत्थर भी लाल हो जाते है 
तो क्या बिसात रखते है तेरी यादों के ज़लज़ले 

तेरे सीने पर सर रख कर सोये रात दिन 
तूने ऐसे छले ऐसे तो कोई दुश्मन भी ना छले 

अगर चार पहर बाद भी भूला लौटे तो भूल कहता है ये जमाना 
तुम तो सदियों बाद आए अब मैं कैसे लगा लू  गले

हाँ कभी-कभी परेशां करता तेरे चेहरे का काला तिल 
खैर तुम जैसे हुस्न वालो से तो हम सांवले भले
                                         --वीर

मैं ऐसे ख़्वाब बूनु जो उम्र भर साथ चले बेवज़ह क्यों दबा जाए तेरी यादों के बोझ तले मेरी ठोकरों से तो पत्थर भी लाल हो जाते है तो क्या बिसात रखते है तेरी यादों के ज़लज़ले तेरे सीने पर सर रख कर सोये रात दिन तूने ऐसे छले ऐसे तो कोई दुश्मन भी ना छले अगर चार पहर बाद भी भूला लौटे तो भूल कहता है ये जमाना तुम तो सदियों बाद आए अब मैं कैसे लगा लू गले हाँ कभी-कभी परेशां करता तेरे चेहरे का काला तिल खैर तुम जैसे हुस्न वालो से तो हम सांवले भले --वीर

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