महकती सुबह
 बेखोफ बढ़ते क़दम 
लहराती घास 
केसरिया सम
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महकती सुबह बेखोफ बढ़ते क़दम लहराती घास केसरिया समा बेहिसाब फिज़ा की महोब्बत ग़ुम होता अंधेरा नीलम सा आसमां बादलों की सड़क चलते जाना खो जाना अंत मे अनन्त हो जाना होने की वजह ढूंढना खुद से मिलना फिर ख़ुद ही का हो जाना ये में हूं हा शायद में ही हूं ©poetraja

#poetraja  महकती सुबह
 बेखोफ बढ़ते क़दम 
लहराती घास 
केसरिया समा 
बेहिसाब फिज़ा की महोब्बत 
ग़ुम होता अंधेरा 
नीलम सा आसमां 
बादलों की सड़क 
चलते जाना 
खो जाना 
अंत मे अनन्त हो जाना 
होने की वजह ढूंढना 
खुद से मिलना 
फिर ख़ुद ही का हो जाना 
ये में हूं हा शायद में ही हूं

©poetraja

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