"बिटिया"
"आज चली गयी वो किसी और का घर सजाने,
अब बिटिया न आयेगी सुबह बाबा को जगाने",
आँखों में वो कितने ख्वाब लिए है,आँसुओं में वो सारे बहने है,
वो तो जानती ही नहीं,कितने और दर्द सहने है,
हाँ खुदको देखती है वो,एक कामयाबी की छत्त पर,
टूटते जा रहे उसके अरमानों का,गला घोंटने लगी है,
बाबा के घर ही होती मैं,ये सोचने लगी है,
"आज चली गयी वो किसी और का घर सजाने,
अब बिटिया न आयेगी सुबह बाबा को जगाने",
माँ मेरा हाल देख दौड़ी घर में फिरती थी,मैं जब बिमार पड़ती थी,
मेरी हर इच्छा का मेरी बहन ख्याल रखती थी,
यहाँ अपनी इच्छा ही याद रहती नहीं,
मैं अब खुश तो नहीं पर बाबा ये बात मैं कहती नहीं,
कहीं जानें का भी मन अपना नहीं,होगा हर फैसला अब उसका,
यू बदलती है ज़िंदगी मैंने सोचा ही नहीं,यू रोक टोक में जीना मैंने सीखा ही नहीं,
ढूँढ़ती रहेंगी नज़रें उसको, याद आयेंगे बचपन के फ़साने,
रुठ कर बैठ जायेगी कहीं, भैया कैसे आयेंगें उसको मनाने,
थककर लौट बाबा दफ्तर से आयेंगे,आज पूरे दिन का हाल किसे सुनायेंगे,
याद में उसकी माँ बाबा रोते रह जायेंगे, मिलने उससे अब गैर बन जायेंगे,
~वैभवी सिंह
©Vaibhabi singh
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