धुनें गाई बहुत लेकिन, न ऐसा राग आया है पिता बन कर, फिर ह्रदय में आज ये अनुराग आया है।। फुहारें आँखों से गिरकर, जमीने बागबाँ हो गई अँधेरा छाँटने वाला वो 'घर क.
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