किसान की जुबानी
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हां, मैंने बंजर में भी सोना उगाया है,
मेरे पीछे मेरे परिवार ने भी पसीना बहाया है,
एक वक्त अपना पेट काटकर भी मैंने;
आपको दो वक्त का खाना खिलाया है...
सोने जैसी लहलहाती वो फसलें..
हां मैंने ही उनको अपने पसीने से सींचा है//
हर रोज खून पसीने का मेहनत किया,
फिर भी आज समाज में मेरा सर नीचा है।।
आसमान को छूती उन हरियाली को भी सलाम
आज तुमने ही उसे सोशल मीडिया पर झलकाया है।
हां उस हर हरियाली की कण_कण में
आज भी मेरा ईमान समाया है।।
मैंने बंजर में भी सोना उगाया है
अपने भारत को एक कदम आगे और बढ़ाया है ।
आपके घर हर अन्न का दाना पहुंचने वाला,
किसी रात वह भी खाली पेट सोया है।।
हां मैंने बंजर में भी सोना उगाया
मेरे पीछे मेरे परिवार ने भी पसीना बहाया
©SAGUN (Manisha)
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