वो महफ़िल में आकर आहिस्ता से, हमारे कान में ये कहकर चली गई.......... तुम हमारी तारीफ़ में भी बेहतर सी, कोई तो ग़ज़ल अब सुनाओ न ज़रा......... इतने लंबे अरसे से हम महफ़.
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