लाल हुई जब ज़मीं ए कर्बला खूं ए शब्बीर से, खाक बन गई शिफा खूँ ए शब्बीर से।। सदा ये आती है ’मोहसिन’ खूं ए शब्बीर से, मातम है हक़ मेरा हुकुम है ये नबी से।।.
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