पीढ़ी दर पीढ़ी वही जीने की कश्मकश सुबह से शाम की वही खानदानी कवायद। इससे ढर्रे में फंसे पड़े हैं सब कमलेश छूटना कोई नहीं चाहता जानते सब हैं शायद ©Kamlesh Kandpa.
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