ग़ज़ल धूप में ही अक्सर खिलता हूँ मैं आँसू का इक क | हिंदी शायरी

"ग़ज़ल धूप में ही अक्सर खिलता हूँ मैं आँसू का इक क़तरा हूँ उसके बिस्तर तक पहुँचा हूँ जबसे इक अफ़वाह बना हूँ बूँद-बूँद खुद ही टूटा हूँ जब भी पत्थर पर बरसा हूँ तुमसे बिछड़कर लम्हा-लम्हा उम्र क़ैद सा मैं गुजरा हूँ तुम तो बस मशहूर हुये हो गली-गली तो मैं रुसवा हूँ भीड़ में हूँ तो क्या जानो तुम आख़िर मैं कितना तनहा हूँ @धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद' ©Dharmendra Azad"

 ग़ज़ल 

धूप में ही अक्सर खिलता हूँ 
मैं आँसू का इक क़तरा हूँ 

उसके बिस्तर तक पहुँचा हूँ 
जबसे इक अफ़वाह बना हूँ 

बूँद-बूँद खुद ही टूटा हूँ 
जब भी पत्थर पर बरसा हूँ 

तुमसे बिछड़कर लम्हा-लम्हा 
उम्र क़ैद सा मैं गुजरा हूँ 

तुम तो बस मशहूर हुये हो 
गली-गली तो मैं रुसवा हूँ 

भीड़ में हूँ तो क्या जानो तुम 
आख़िर मैं कितना तनहा हूँ 

@धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद'

©Dharmendra Azad

ग़ज़ल धूप में ही अक्सर खिलता हूँ मैं आँसू का इक क़तरा हूँ उसके बिस्तर तक पहुँचा हूँ जबसे इक अफ़वाह बना हूँ बूँद-बूँद खुद ही टूटा हूँ जब भी पत्थर पर बरसा हूँ तुमसे बिछड़कर लम्हा-लम्हा उम्र क़ैद सा मैं गुजरा हूँ तुम तो बस मशहूर हुये हो गली-गली तो मैं रुसवा हूँ भीड़ में हूँ तो क्या जानो तुम आख़िर मैं कितना तनहा हूँ @धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद' ©Dharmendra Azad

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