मै जब भी मौज़-ए-सफ़र में रहता हूँ ऐसा लगता है जैसे | हिंदी शायरी

"मै जब भी मौज़-ए-सफ़र में रहता हूँ ऐसा लगता है जैसे घर में रहता हूं। कोई  मुझे ना जाने  ये मुमकिन तो नहीं मै तो अह्ल-ए-जहां की नज़र में रहता हूं। सुनो तुम जब चाहो चले आना मेरे पास मै  तुम्हारे ही शहर प्रेम नगर में रहता हूं। मै ख़ुद को ख़ुदा से अलग नहीं मानता मै  तो  मंदिर  के  बराबर  में  रहता  हूं। सुनो जय मेरी तलाश अब बंद भी करो मै तो सबके दिल-ओ-ज़िगर में रहता हूं। ©mritunjay Vishwakarma "jaunpuri""

 मै जब भी मौज़-ए-सफ़र में रहता हूँ
ऐसा लगता है जैसे घर में रहता हूं।

कोई  मुझे ना जाने  ये मुमकिन तो नहीं
मै तो अह्ल-ए-जहां की नज़र में रहता हूं।

सुनो तुम जब चाहो चले आना मेरे पास
मै  तुम्हारे ही शहर प्रेम नगर में रहता हूं।

मै ख़ुद को ख़ुदा से अलग नहीं मानता
मै  तो  मंदिर  के  बराबर  में  रहता  हूं।

सुनो जय मेरी तलाश अब बंद भी करो
मै तो सबके दिल-ओ-ज़िगर में रहता हूं।

©mritunjay Vishwakarma "jaunpuri"

मै जब भी मौज़-ए-सफ़र में रहता हूँ ऐसा लगता है जैसे घर में रहता हूं। कोई  मुझे ना जाने  ये मुमकिन तो नहीं मै तो अह्ल-ए-जहां की नज़र में रहता हूं। सुनो तुम जब चाहो चले आना मेरे पास मै  तुम्हारे ही शहर प्रेम नगर में रहता हूं। मै ख़ुद को ख़ुदा से अलग नहीं मानता मै  तो  मंदिर  के  बराबर  में  रहता  हूं। सुनो जय मेरी तलाश अब बंद भी करो मै तो सबके दिल-ओ-ज़िगर में रहता हूं। ©mritunjay Vishwakarma "jaunpuri"

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