मै जब भी मौज़-ए-सफ़र में रहता हूँ ऐसा लगता है जैसे घर में रहता हूं। कोई मुझे ना जाने ये मुमकिन तो नहीं मै तो अह्ल-ए-जहां की नज़र में रहता हूं। सुनो तुम जब च.
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