"ख़ुश-नसीबी भूल कर भी उस के घर आती नहीं
घर से मुफ़्लिस के कभी अच्छी ख़बर आती नहीं
आसमाँ से बाँट कर आती ज़मीं पे क्या कि जो
रौशनी ये एक जैसी सब के दर आती नहीं
क्या कभी तुम ने सुनी मुफ़्लिस के मरने की ख़बर
मौत होती है गरीबों की मगर ख़बर हम तक आती नहीं
ले रही है जाँ ग़रीबों की ग़रीबी दिन-ब-दिन
मेरे यार फिर भी हमें क़ातिल नज़र आती नहीं।।
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©एक अजनबी
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