झिलमिलाता ज्योति पर्व है,जलाओ दीप प्रेम के।
मिटा के नफरतों के तम उगाओ बीज नेह के।
मन में जो भी हों गिले मन में ही करो दफन,
सजाओ प्रेम मन के द्वार, प्रेम को करो नमन,
प्रेम ही बसाओ मन, गुनगुनाओ गीत प्रेम के।
मिटा के नफरतों के तम उगाओ बीज नेह के।
खुशी खिली रहे जहां में चहरों पे हंसी रहे,
लक्ष्मी प्रसन्न हों, कृपा कुबेर की रहे,
सदैव मन सरल रहे, छाए न अंध जंगी मेघ के।
मिटा के नफरतों के तम उगाओ बीज नेह के।
राम जी सी शीलता हो राम जी के देश में,
इस दिवाली को सजाओ प्रेम ज्योति वेष में,
जगमगाते हों दिए, लिए उजाले प्रेम के।
मिटा के नफरतों के तम उगाओ बीज नेह के।
©रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"
#Diwali