ना जाने इस ज़माने में कैसी लगी ये अगन है कि दिल जल
"ना जाने इस ज़माने में कैसी लगी ये अगन है
कि दिल जल रहा है, पर महफ़ूज़ बदन है
नफ़रतों के बीज 🌰बो दिये हैं इंसां ने
जो शजर-ए-नफ़रत बनकर हर एक के सर पे डाले अक्स फ़िगन है
मो. इक्साद अंसारी"
ना जाने इस ज़माने में कैसी लगी ये अगन है
कि दिल जल रहा है, पर महफ़ूज़ बदन है
नफ़रतों के बीज 🌰बो दिये हैं इंसां ने
जो शजर-ए-नफ़रत बनकर हर एक के सर पे डाले अक्स फ़िगन है
मो. इक्साद अंसारी