"जब अश्क निकले बेशुमार निकले
कुछ इस तरह दिल के ग़ुबार निकले
दिल लगता हैं मेरा विसाल-ए-यार में
उम्र भर का अब कैसे इन्तेज़ार निकले
उनके आने से समझो बहार निकले
एक झलक पाने हम बे-करार निकले
खबर ज़माने को रहती हैं तेरे आने की
हर गली में क्या तेरा इश्तिहार निकले
हिज्र की रात कैसे ख़ुश-गवार निकले
यार ख्वाबों से भी तुम फरार निकले
लौटाना होगा तुमको मेरी बैचैन रातें
ख्वाबों में भी तुम कर्जदार निकले
संग तेरे बीता हर लम्हा यादगार निकले
जर्रा-जर्रा क्यूं ना तेरा वफादार निकले
बेवफ़ाई की दुनियां में वफ़ा-ए-'अहद
'अरमान' क्या खूब तेरा किरदार निकले
©PRIYANK SHRIVASTAVA 'अरमान'
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