Dear Childhood जिंदगी जीने की जब तैयारी न थी, बचप | हिंदी शायरी

"Dear Childhood जिंदगी जीने की जब तैयारी न थी, बचपन मे जब समझदारी न थी। गिरते संभलते मिट्टी तक खा लेते थे, पापा कहते हैं होशियारी न थी। पर अब भी वो बचपन रहता तो अच्छा रहता, हम बच्चे ही रहते तो अच्छा रहता। उल्टे चप्पल जब पाव में पहन लेते थे, घुटनों के बल जब अंगना मे चल लेते थे। माँ जब डाटती कुछ समझ में न आता था, भूख प्यास लगने पर रोके बताता था। अब भी सब कुछ इशारों में ही कहता तो अच्छा रहता, हम बच्चे ही रहते तो अच्छा रहता। ...कुमार आदित्य... . ©Kumar Aditya"

 Dear Childhood जिंदगी जीने की जब तैयारी न थी, 
बचपन मे जब समझदारी न थी। 
गिरते संभलते मिट्टी तक खा लेते थे, 
पापा कहते हैं होशियारी न थी। 
पर अब भी वो बचपन रहता तो अच्छा रहता, 
हम बच्चे ही रहते तो अच्छा रहता। 

उल्टे चप्पल जब पाव में पहन लेते थे, 
घुटनों के बल जब अंगना मे चल लेते थे। 
माँ जब डाटती कुछ समझ में न आता था, 
भूख प्यास लगने पर रोके बताता था।
अब भी सब कुछ इशारों में ही कहता तो अच्छा रहता, 
हम बच्चे ही रहते तो अच्छा रहता।
...कुमार आदित्य...





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©Kumar Aditya

Dear Childhood जिंदगी जीने की जब तैयारी न थी, बचपन मे जब समझदारी न थी। गिरते संभलते मिट्टी तक खा लेते थे, पापा कहते हैं होशियारी न थी। पर अब भी वो बचपन रहता तो अच्छा रहता, हम बच्चे ही रहते तो अच्छा रहता। उल्टे चप्पल जब पाव में पहन लेते थे, घुटनों के बल जब अंगना मे चल लेते थे। माँ जब डाटती कुछ समझ में न आता था, भूख प्यास लगने पर रोके बताता था। अब भी सब कुछ इशारों में ही कहता तो अच्छा रहता, हम बच्चे ही रहते तो अच्छा रहता। ...कुमार आदित्य... . ©Kumar Aditya

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