एक शहर
एक शहर जो मुझे भाता रहा है,
मेरे यादों पर बादल सा छाता रहा हैं।
कभी हो सपना,हकीकत हो या फिर,
इशारों में मुझको बुलाता रहा हैं।
आना और जाना तो चलता ही रहता,
पवन अपनापन का तो हरदम ना बहता।
ये ठहरी सड़क,इनपे चलती ये गाडिय़ा,
सफर रुकता चलता ये कुछ तो हैं कहता।
कोई अपना इसकी सादगी को गाता रहा हैं,
एक शहर जो मुझको भाता रहा हैं।
हमसफर हैं मुझको बनाना वही से,
हैं ख्वाबों की दुनियाँ सजाना वही से।
हो सुबह की गुमसुम,या शामों में हिस्सा,
एक पल धड़कन को अपनी, ठहराना वही से।
जो मेरे बेचैन मन को मनाता रहा हैं,
एक शहर जो मुझको भाता रहा हैं।
मेरी यादों में बादल सा छाता रहा हैं।
...कुमार आदित्य...
...laparwah139...❤️❤️
❤️❤️
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©Kumar Aditya
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